ह्रदय का कोना | HRIDAY KA KONA
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33 MB
कुल पष्ठ :
157
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अनन्त प्रसाद विद्यार्थी - Anant Prasad Vidyarthi
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छुदय का कोना ] द ७
“फिलासफी ! ओर फिर भी हिन्दी से इतना प्रेम !?
कांतिकुमार मुस्कराकर रह गया।.
आपने बी० ए.० कहां से किया था १”
बनारस-विश्वविद्यालय से |!
वार्तालाप समाप्त सा हो गया | प्रेमलता चाहती थी कि वार्तालाप
का सिलसिला न टूटे परन्तु इस तरह प्रश्नोत्त कितनी देर तक किया
जा सकता है। अजीब व्यक्ति है, जो पूछे, केवल उसी का उत्तर देना
जानता है ।
तभी कांतिकुमार ने पूछा--आप वीमेंस यूनीवर्सिटी की. . .
उसकी बात पूरी भी न हो पाई थी कि प्रेमलता ने उत्तर दिया--
जी, में बी० ए.० फायनल में हूँ ।
ओर फिर वार्तालाप का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि रास्ते भर
बातें होती रहीं | कांतिकुमार ने बताया वह डी-रोड पर रहता है। प्रेम-
- लता के बंगले से डी-रोड बहुत दूर नहीं है। पारस्परिक परिचय के
पश्चात वार्तालाप का विषय साहित्य पर आ रुका | कुछ छतञों मेंही
दोनों के हृदय परिचित हो गये । प्रेमलता को उससे वार्तालाप करने में
एक अनिवचनीय सुख का अनुमव हो रहा था ।
प्रेमलता का बंगला निकट आ गया तो नमस्ते कर कांतिकुमार
द आगे बढ़ गया । अपने कमरे में जाकर प्रेमलता एक कोच पर लेट
! गई | उसकी विचार धारा चल रही थी । कांतिकुमार स्वभाव के कितने
'अच्छे हैं; कितने सभ्य ढंग से बातचीत करते थे | साहित्य का अध्ययन
भी उनका गहरा मालूम हीता है | क्
यौवन में नारी में प्रेम की मूख जग उठती है। योवन के साथ ही
साथ प्रेम की भावना एक भावुकता सी बन हृदय में बैठ जाती है।
हृदय एक अभाव का अनुभव करने लगता है। अ्माव का यह मीठा-
मौठा दर्द यौवन में सभी को अनुभव होता है युवा हृदय इसे प्रेम की
देन कहते हैं पर धर्माचार्यों के सम्मुख यह पाप है, कलंक है। प्रेमलता
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