एक औरत की नोटबुक | EK AURAT KI NOTEBOOK

EK AURAT KI NOTEBOOK by पुस्तक समूह - Pustak Samuhसुधा अरोडा - SUDHA ARORA

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सुधा अरोडा - SUDHA ARORA

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कहानी अन्नपूर्णा मंडल की आखिरी चिट्ठी प्यारी माँ और बाबा, चरण-स्पर्श ! मुझे मालूम है बाबा, लिफ़ाफ़े पर मेरी हस्तलिपि देखकर लिफ़ाफ़े को खोलते हुए तुम्हारे हाथ कॉप गए होंगे। तुम बहुत एहतियात के साथ लिफ़ाफ़ा खोलोगे कि भीतर रखा हुआ मेरा ख़त फट न जाए। सोचते होगे कि एक साल बाद आख़िर मैं तुम लोगों को खत क्‍यों लिखने बैठी। कभी तुम अपने डाकघर से, कभी बाबला या बठदी अपने ऑफ़िस से फोन कर ही लेते हैं फिर ख़त लिखने की क्या जरूरत। नहीं, डरो मत, ऐसा कुछ भी नया घटित नहीं हुआ है। कुछ नया हो भी क्‍या सकता है? बस, हुआ इतना कि पिछले एक सप्ताह से मैं अपने को बार-बार तुम लोगों को ख़त लिखने से रोकती रही। क्यों? बताती हूँ। तुम्हें पता है न बंबई में बरसात का मौसम शुरू हो गया है। मैं तो मना रही थी कि बरसात जितनी टल सके, टल जाए, लेकिन वह समय से पहले ही आ धमकी। और मुझे जिसका डर था, वही हुआ। इस बार बरसात में पार्क की गीली मिट्टी सनी सड़क से उठकर उन्हीं लाल अन्नपूर्णा मंडल की आखिरी चिट्ठी :: 31




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