गुलजार की त्रिवेणियाँ | GULZAR KI TRIVENIYAN

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गुलज़ार - GULZAR

गुलज़ार का जन्म कालरा सिख परिवार में, माखन सिंह कालरा और सुजन कौर के साथ, दीना, झेलम जिला, ब्रिटिश भारत (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। स्कूल में, उन्होंने टैगोर की रचनाओं के अनुवाद पढ़े थे, जिन्हें उन्होंने अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण बिंदुओं में से एक के रूप में देखा। विभाजन के कारण, उनका परिवार अलग हो गया और उन्हें अपनी पढ़ाई को रोकना पड़ा और अपने परिवार का समर्थन करने के लिए मुंबई (तब बॉम्बे ) में आ गए। सम्पूर्णान ने मुंबई में रहने के लिए कई छोटी-छोटी नौकरियां निकालीं, जिनमें एक बेलसैस रोड (मुंबई) के विचारे मोटर्स में एक गैरेज में शामिल है। कहीं भी वह अपने हाथों में पेंट के रंगों को मिलाकर

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११.कभी कभी बाजार में यूँ भी हो जाता है क्रीमत ठीक थी,जेब में इतने दाम नहीं थे ऐसे ही इक बार मैं तुम को हार आया था। १२. वह मेरे साथ ही था दूर तक मगर इक दिन जो मुड के देखा तो वह दोस्त मेरे साथ न था फटी हो जेब तो कुछ सिक्के खो भी जाते हैं। १३.वह जिस साँस का रिश्ता बंधा हुआ था मेरा दबा के दाँत तले साँस काट दी उसने कटी पतंग का मांझा मुहल्ले भर में लुटा! १४. कुछ मेरे यार थे रहते थे मेरे साथ हमेशा कोई साथ आया था.उन्हें ले गया,फिर नहीं लौटे शेल्फ़ से निकली किताबों की जगह ख़ाली पड़ी है! १५ इतनी लम्बी अंगड़ाई ली लड़की ने शोले जैसे सूरज पर जा हाथ लगा छाले जैसा चांद पड़ा है उंगली पर! १६. बुड़ बुड़ करते लफ्ज़ों को चिमटी से पकड़ो फेंको और मसल दो पैर की ऐड़ी से | अफ़वाहों को खूँ पीने की आदत है। १७.चूडी के टुकड़े थे,पैर में चुभते ही खूँ बह निकला नंगे पाँव खेल रहा था,लड़का अपने आँगन में बाप ने कल दारू पी के माँ की बाँह मरोड़ी थी! मवंग]व1800%3071176 .17010ठ85[70060 - ८छ॥




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