चमकता लाल सितारा | CHAMAKTA LAL SITARA
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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ली शिन-ध्येन - LI SHEN DHYEN
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“इसमें है,'' यह कहते हुए माँ ने एक पोटली की तरफ इशारा किया |
“श्वेत रक्षकों के आ जाने पर हम क्या करेंगे, माँ?” मैंने आग्रहपूर्वक पूछा ।
“चाहे जो भी आए और चाहे जो भी सवाल पूछे, तुम हरगिज कुछ न बताना ।'
मैंने हामी भर ली ।
जब माँ मेरे कोट की सीवन ठीक कर चुकीं तो वे बैठकर सोचने लगीं । वे बाहर जाने ही वाली थीं कि हमारे
अहाते में शोर-गुल सुनाई पड़ा । श्वेत रक्षकों के एक गिरोह की अगुवाई करता हुआ हू हान-सान आ रहा था।
वह अकड़ता हुआ अन्दर घुस आया और अपनी छड़ी माँ की तरफ उठाते हुए चीख कर बोला, “तुम्हारा पति
कहाँ है?”
माँ तनिक भी विचलित न हुई और जमींदार की तरफ आँख उठाए बिना बोलीं, “वे उत्तर में जापानी
हमलावरों के खिलाफ लड़ने गए हैं|”
“डर कर भाग गया है ना, क्योंकि मैं जो वापस आ गया हूँ! हू त्यौरियाँ चढ़ाकर बोला ।
“सिर्फ दुष्ट और कमीने लोग ही डर कर भागते हैं” यह पहला मौका था जबकि मैंने माँ को गाली देते
सुना था, क्योंकि यह हू हान-सान ही था जो गाँव छोड़कर भाग गया था!
हू की कनपटी पर नसें उभर आईं । गुस्से से तमतमाते और दाँत पीसते हुए, उसने माँ को पकड़ लिया और
गरजा, “बोल! तेरा आदमी कहाँ चला गया है?” इस पर भी माँ चुप रहीं तो उसने उनके मुँह पर एक तमाचा
जड़ दिया । “मुझे तेरे पति से काफी लम्बा-चौड़ा हिसाब चुकाना है,” उसने गुरति हुए कहा ।
माँ ने जमींदार का हाथ झटक कर अलग कर दिया और बिना डरे तन कर खड़ी हो गईं
अचानक हू की नजर मुझ पर पड़ी और वह मेरी तरफ झपटा । “बोल! कहाँ है तेरा बाप ?”
मुझे याद आ गया, माँ ने मुझे क्या कहा था । इसलिए मैं बिल्कुल चुप रहा !
मुझे भी माँ की ही तरह अडिग देखकर जमींदार का पारा आसमान पर चढ़ गया। उसने मुझे जमीन पर दे
मारा और मेरे पेट में लात मारी | मेरे मुँह से एक हल्की सी चीख निकली, लेकिन मैं रोया नहीं | मैं उठा खड़ा
हुआ और एक शब्द भी न बोला ।
हू हान-सान ने एक हाथ से मेरी गर्दन दबोच ली और बोला, “बता, तेरा बाप कहाँ भाग गया है?”
एक झपाटे से मैंने अपने दोनों हाथ ऊपर उठाकर जमींदार का हाथ अपनी गर्दन से हटा दिया और अपने
दाँतों से उसकी ऊँगली धर दबाई एक घायल सुअर की तरह चीखते हुए उसने अपनी उँगली छुड़ाने की कोशिश
की । लेकिन मैंने अपने दाँत उसकी उँगली में और ज्यादा मजबूती से गड़ा दिए । मैंने सोचा कि उसकी उँगली ही
काट लूँ। अपने दूसरे हाथ से हू ने बन्दूक उठाने की कोशिश की और उसके गुर्गों ने मुझे धर दबोचा | हालत
बिगड़ती देखकर माँ ने मुझे जमींदार की ऊँगली छोड़ देने का आदेश दिया और अपने पास खींच लिया। हू
हान-सान की उँगली से खून टपकने लगा दर्द के मारे उसका चेहरा बिगड़ गया था| तभी उसने अपनी पिस्तौल
मेरी तरफ तान दी ।
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