चार दीवरी | CHAR DEEWARI

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मनमोहन मदारिया - Manmohan Madariya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ ४ मुझसे घनिष्टता बढ़ाने की कोशिश करती हैं और यदि. में उनका घनिष्टता को स्वीकार करने में असमथ हूँ तो इसमें मेरा क्या दोष १ लेकिन समाज का न्याय अंधा होता है। लखनऊ बड़ा उतना शहर है, पर मेरे लिए तो जनशून्य हो गया । इस विचित्र-सी हास्यास्पद स्थिति से बचने के लिए मैं एक गलती कर बैठा । मेरी जाति के एक बुजुर्ग अक्सर मेरे पास आया करते थे। पहले तो में उनका उद्दे श्य मालूम न कर सका था, लेकिन बाद में मालूम हुआ, ' उनकी कोई नातिन है जो सयानी हो चली थी । मुझे जिस दिन यह मालूम हुआ, उस दिन से ही में उनसे कतराने लगा, पर बह भी जीवट के आदमी थे | उन्होंने मेरा पीछा न छोड़ा | उन्हें शायद अपने: प्रयत्नों पर अपेक्षाकृत अधिक मरोसा था। दो-एक बार वह मुझे अपने घर भी ले जा चुके थे ओर में उनकी उस नाविन को देख चुका था। शायद उसे यह बतलाया जा चुका था कि मैं उसका भावी पति हूँ | इस कारण बह मुझे देखते ही शर्म से लाल हो जाती और लम्बा-सा घबट काढ़ कर मेरी दृष्टि के परे हो जाने की चेष्टा करती लेकिन मैं जानता था, जब तक मैं वहाँ रहता, बह द्वार के ओंट में खड़ी रहती ओर मेरे हर शब्द, मेरी हर हलचल को महसूस करती रहती | वह पन्द्रह या सोलह वर्ष की मैंकोल कद की गोरी-सी लड़की थी और फूहड़ व्यवहार के बावजूद भी सुन्दर कही जा सकती थी । दादाजी की दृष्टि में वह परम गुणंवती कन्या थी, रामायण बाँच लेती थी।॥ः उसे शायद मेरी ऊँची शिक्षा-दीकज्षा का भी ज्ञान था ओर जिस दिन मेरा वहाँ जाने का कार्यक्रम होता, उस दिन वह विशेष रूप से शृज्ञारः करने की चेष्टा करती--मदहावर और बिंदियों से लेकर रूज ओर लिपस्टिक तक प्रसाधनों का वह उपयोग करती ! उस साज-घ्रज्ञार में # चार दीवारी:




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