औरत एक रात है | AURAT EK RAAT HAI

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मालती जोशी - Malti Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निरवांसित कर टी तमने मेरी प्रीत / 15 में था । दहज का साम्रान देखकर तो आँखे चकाचोध हो गई । सब कुछ इम्पोर्टेड था । तीस तोला सोना और चॉँदी के बर्तनों का परा सेट । साड़ी कोई भी टो हजार से कम की नहीं होगी । पिछली बार की तरह इस बार भी हम विस्मय-विगुग्ध थे । क्या सचमृच भेया वी इतनी हैसियत है ? लेकिन इस शाही सरजाम के बावजूद बारातियों के मिजाज नहीं मिल रहे थे । बार-बार शिकायते आ रही थी, “रूम सर्विस ठीक नहीं है, ए०सी० काम नहीं कर रहा, कमगे में कलर टी०वी० नहीं है, फोन पर एस०टी०डी० सुविधा नही है 1” भैया बार-बार फोन पर गिड़गिड़ाए जा रहे थे, “सर, मैने तो इस शहर का सबसे पॉश होटल आपके लिए बुक करवाया है । इससे अधिक मैं क्या कर सकता हूँ 2 अपने धीर, गंभीर, विद्वान और शरौबन्टाब वाले भाई को इस तरह गिडगिडाते देखना बडा बुरा लग रहा था | उधर होटल वाले बारांतियों की बदतमीजियो की शिकायत किए जा रहे थे | भैया अजीब पसोपेश मे थे । उन लोगो की बदतमीजी का प्रमाण तो द्वाराचार के समय ही मिल गया । नाचते-नाचते तीन घंटे तो उन लोगो ने रास्ते मे ही लगा दिए । भैया के सारे गण्यमान्य अतिथि भाभी के हाथ मे लिफाफा थमाकर बिना खाए-पिए ही चले गए । अपनी बेटी के लिए भैया ने हीरे जैसा दामाद ढूँढ़ा था, पर उसका प्रदर्शन करने की तमना अधूरी ही रह गई । बाद मे लगा कि अच्छा ही हुआ, जो सब लोग जल्दी चले गए । बाद का नजाग जरा भी देखने लायक नहीं था । सब लोग, खासकर लडके नशे में धत्त थे । वे लोग अश्लील गाने गा रहे थे ! भद्दी फब्तियों कस रहे थे । वे लोग कोल्डिक से होली खेल रहे थे । गिलासों को फुटबॉल की तरह लुढ़का रहे थे | एक-दो बेटरों के साथ तो झुमा-झटकी भी हो गई । सज-सँवरे पडाल का उन्होने पल-भर में नक्शा बदल दिया । कैटरर के साथ बदसलूकी की, तो वह जाने की धमकी देने लगा । अब भैया कभी उसके हाथ जोड रहे थे, तो कभी उन लडकों के । मेस तो खून खौल उठा था | बडी मुश्किल से अपने ऊपर जब्न किए रही । ऐसा न हो कि अपनी वजह में रग मे भग हो जाए । उधर भाभी बार-बार ऑसू पोछते हुए अपने भाग्य की कोस रही थीं, “काश, एक बेटा होता, तो आज बाप के साथ खड़ा तो होता ।” वहाँ जो एक सुपुत्र थे, यानी कि सन-इकलों फ्रो० जीतेद्र, बडे ही निर्लिप्त भाव मे साय तमाशा देख रहे थे । मौका पाते ही उन्होंने हँसते हुए कहा, “बआजी, ठटेख रही है ने, अब इन्हें पता चलेगा कि बारातियों के खरे क्या होते है ? हमाण तो गेंवई गाँव का परिवार था उसे धर्मशाला में टिका दिया पॉच मिठाइयें वाली पगत दे दी छुड्टी पा




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