पत्थर की कहानी | Pathar Ki Kahani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनुवादक की ओर से अपने विद्यार्थी जीवन को याद करूं तो विज्ञान के विषयों में मेरी सबसे ज्यादा रूचि जीव विज्ञान में थी और उसमें भी विकासवाद' में और ज्यादा । लैमाक॑, डार्विन से लेकर मिलर आदि तक सभी अध्ययन इतने रोचक और रोमांचकारी थे कि उन्हें बार-बार पढ़ने को मन करता । इस पढ़े हुए के बरक्स जब चारों तरफ की दुनिया जीव-जन्तु, पौधे, चट्टान, पहाड़, समुद्र को देखते तो और नये कौतूहल, नये प्रश्न मन में पैदा होते । फिर उनके उत्तरों की तलाश। निःसंदेह बीच-बीच में धर्म की आड़ में अंधविश्वासों के जाले भी इससे साफ होते रहते | 'पत्थर की कहानी' भी प्रथ्वी पर जीवन के शुरूआती विकास का एक हिस्सा है | पत्थर के अपने ही शब्दों में आत्मकथा । करोड़ों साल पहले पत्थर कहां से चलकर कब, कहां पहुंचा | कभी समुद्र की तलहटी में तो कभी पृथ्वी पर सैंकड़ों बार आये परिवर्तन, आलोड़न से किसी महाद्वीप के किसी पहाड़ पर और फिर अचानक बहकर नदी की रेत में तब्दील होता । धूप, रोशनी मौसम की मार खाता और फिर उसी से एक दिन जीवन की शुरूआत करता, देखता | हजारों हजार साल की पत्थर की इस यात्रा की कहानी पृथ्वी पर जीवन की शुरूआत का भी मुकम्मिल बयान है । जाने-माने भारतीय मृदा वैज्ञानिक द्वारा बहुत धैर्य से लिखा गया रोचक विवरण | उम्मीद है कि नयी पीढ़ी में विज्ञान के प्रति रूचि जगाने में यह पुस्तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी । प्रेमपाल शर्मा ८७४० ह /! (17 ॥/ ॥ ॥/ ॥// ( (५५॥४४॥॥ 22. /// | | न्् (22 4/ >>. /((7:८८ एक बार मेरी मुलाकात एक कंकड़ से हुई। उन्हीं कंकड़ों से जिन्हें आप झेलम नदी और आस-पास रोज देखते हैं और




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