वाह विज्ञान | WAH VIGYAN

WAH VIGYAN by अरविन्द गुप्ता - ARVIND GUPTAपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पत्थरों की पहचान और उनके नाम, आदिवासी कहानियां, सिलाई, भोजन बनाना, नमक के क्रिस्टल बनाना, चिथडों से गमले लटकाने के हेंगर बनाना, खेल-घर के लिए फर्नीचर बनाना, जानवरों के पैरों के निशानों के सांचे बनाना और उनमें से कई को पहचानना, सूत कातना और खडडी पर बुनाई करना जैसे बहुत से हुनर उन्हें आते थे। उन्होंने क्रियाओं और गतिविधियों के माध्यम से बच्चों को इन सबके साथ-साथ और बहुत कुछ करने को प्रेरित किया। इन सब कुशलताओं के साथ-साथ छोटे बच्चों के ही नहीं हर उम्र के छात्रों के शिक्षकों को बहुत सी चीजों की जानकारी होनी चाहिए और उससे भी अधिक चीजों में रुचि होनी चाहिए। मिस वेबर के स्कूल की कई अन्य बाते हैं जो बिल्कुल अलग से छिटकती हैं। उनका स्कूल जीवान्त, प्राकृतिक और असली था। उनके बच्चों को जंगल में पिकनिक अथवा समुद्र के तट की सैर करने में अपार आनंद आता था। अक्सर ऐसा होता था - जो प्रश्न बच्चे पूछते थे वही स्कूल का पाठ्यक्रम और आगे के शोध का विषय बन जाता था। मिस वेबर के स्कूल ने इस दलील को पूरी तरह ठुकरा दिया था कि गरीब बच्चे जिनके पास तथ्यों की कमी हे वो स्वच्छंद रूप से सोच नहीं सकते। सभी बच्चे अपने आसपास की दुनिया को समझना चाहते हैं और उसे समझने के दौरान वो उपयुक्त तथ्य भी इकट्ठे करते हें। यह कितनी महत्वपूर्ण बात है कि मिस वेबर को अपनी मर्जी से पाठ्यक्रम रचने की छूट थी। वो बच्चों के प्रश्नों और रुचियों के इर्दगिर्द ही पाठ्यक्रम रचतीं। बीच-बीच में वो अपने विचार भी पेश करतीं जिनमें में कुछ अच्छा काम करते और कुछ दबाव रहने तक ही सफल होते। पर मिस वेबर की कुछ बातों को बच्चों ने अपनाकर खुद अपना बनाया। मुख्य बात यह है कि मिस वेबर को हर साल उसी घिसेपिटे पाठ्यक्रम को नहीं लागू करना पडा। न ही उन्हीं पुरानी उबाऊ पुस्तकों को उपयोग करना पड़ा। वो नई दिशाएं खोजने के लिए मुक्त थीं और इससे उनकी रुचि और उमंग कभी फीकी नहीं पडी। ओर इस वजह से बच्चों में सीखने की लगन भी सदा बनी रही। माई कट्री स्कूल डायरी के आमुख से जॉन होल्ट जानवरों का स्कूल - एक दंतकथा एक बार की बात है। जंगल के सभी जानवरों ने एक बैठक बुलाई। वो अपने लगातार जटिल होते जा रहे समाज के बारे में कोई ठोस हल खोजना चाहते थे। बैठक के अंत में सभी जानवरों ने सर्वसम्मति से एक स्कूल शुरू करने का फैसला किया। स्कूल के पाठ्यक्रम में दोड़ना, चढ़ना, तैरगा और उड़ने जेसी कुशलताएं शामिल की गयीं। क्योंकि ये कुशलताएं ज्यादातर जानवरों के मूल स्वभाव का हिस्सा थीं, इसलिए सभी छात्रों के लिए इन विषयों को लेना अनिवार्य माना गया। बत्तख तैराकी में उस्ताद निकली। वास्तव में वह अपने शिक्षक से भी ज्यादा तेज निकली। परन्तु दौड़ में उसका प्रदर्शन एकदम खराब रहा। इसलिए स्कूल खत्म होने के बाद दौड़ने के अभ्यास के लिए उसे रुकना पड़ता था। उसे तैराकी छोड़नी पड़ी, ताकि वह दोड़ का अधिक अभ्यास कर सके। उसे अपने कमजोर विषय का लगातार अभ्यास करना पड़ा। वह इतनी दौडी कि अंत में उसके पैरों की खाल सूजकर दुखने लगी। इससे वह अच्छी तरह से तैर भी नहीं सकती थी। परन्तु स्कूल को यह मंजूर था। उस नन्‍्ही बत्तख को छोड़कर बाकी किसी को इसकी फिक्र न थी। ननन्‍्हा खरगोश दौड़ में अपनी कक्षा में अव्वल आया। परन्तु स्कूल उसे तैरने का अभ्यास करने के लिए लगातार धकेलता रहा। खरगोश को तैराकी से एकदम नफरत थी। अंत में बेचारा खरगोश अपना मानसिक संतुलन ही खो बेठा। नन्‍्हीं गिलहरी चढ़ने में चतुर और निपुण थी। परन्तु जब उड़ने की बारी आई तो उसके शिक्षक ने उससे पेड़ पर चढ़ने की बजाए जमीन से उड़ान भरने का आग्रह किया। उससे इस उबाऊ काम का अभ्यास बार-बार कराया गया। नतीजा यह हुआ कि बेचारी गिलहरी की मांसपेशियां जवाब दे गयीं। वह अथक प्रयासों के बाद ही चढ़ने में पास हुई, ओर दौड़ में तो फेल ही हो गई। चील स्कूल के लिए सबसे बडी चुनोती साबित हुई। उसने सभी नियम-कानूनों को ताक पर रख दिया। उसने पेड़ों पर चढ़ने की क्षमता में सारे स्कूल को मात दे डाली। लेकिन पेड़ पर चढ़ने के लिए उसने स्कूल का नहीं बल्कि खुद का तरीका अपनाया। ग्रोफर (बिलखोदा) नाम के जानवर स्कूल नहीं गए। बाहर रहते हुए उन्होंने अपने ऊपर लगे शिक्षा टैक्स का जोरदार विरोध किया क्‍योंकि स्कूल में खुदाई का विषय ही नहीं था। उन्होंने अपने बच्चों को मशहूर खुदाईकर्ता बिज्जू का शार्गिद्‌ बना दिया। बाद में उन्होंने सुरंग खोदने वाले सुअरों से प्रशिक्षण लिया। अंत में उन्होंने वेकल्पिक शिक्षा के लिए अपना प्राइवेट स्कूल शुरू किया। - एक अनाम व्यक्ति का लेख (वो टोरॉण्टो विश्वविद्यालय का छात्र था) एन सायर वाइजमैन की पुस्तक - मेकिंग थिग्स से उद्धत




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