बच्चों की कचहरी | BACHCHON KI KACHEHRI
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
10
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
केशवचंद्र वर्मा - KESHAVCHANDRA VERMA
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कई बच्चे :
रामू
कई स्वर :
गोपी...
चंपी
गोपी
टिल्लो
“” ऐसे कई आदमी हैं जो हम बच्चों के
अधिकारों का ठीक-ठीक ख्याल नहीं करते।
हम उन सबको बारी-बारी से अपनी कचहरी
में लाएंगे | इसके लिए यह बहुत जरूरी है कि
आप सब लोग एक राय होकर हमें बताएं।
हम सबसे पहले माली को बुलाना चाहते हैं।
हां, हां, माली को जेल में बंद करवा दो दादा!
जेल कर दो !!
बेंत लगाओ दादा !!|
: (समझाते हुए) ठीक है, ठीक है, सब हो
जाएगा | सब हो जाएगा। मगर आपकी राय
हैन?
हां, हां! राय है “ मुकदमा चलाओ |
: अच्छा तो अब जज किसे बनाया जाए ?
: राजू दादा को जज बनाओ। एक झापड़ में
सबको ठीक कर
चुप रह चंपी। जज कहीं झापड़ थोड़े ही
मारता है ! वह तो फांसी देता है, फांसी !
: तब तो परभू भैया को बनाओ। इन्होंने तो
जमील को उठा के पटक दिया था। इनको
गोपी
परमभू
सब
कह दो, ये फांसी लगा देंगे।
: तू भी बड़ी उल्लू है टिललो। जज थोड़े ही
फांसी लगाने बैठता है | जज तो हुक्म करता
है सोच-समझकर
मेरी मानो। मैं कहूं भाई सोचने-समझने
वाली बात है। रम्मू दादा को जज बनाओ।
अपने बीच वही सबसे होशियार आदमी है।
क्यों भाई, क्या कहते हो ?
: हां, हां, ठीक है
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