शेख चिली की कहानियाँ | SHIEKH CHILLI

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अनूपा लाल - ANUPA LAL

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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3() शंख चिल्‍ली की कहानिया 61 -न “सलाम सरकार,” शेख ने कहा। “में आपके लिए काम करने आया हू। काजी ने शेख के भोले चेहरे को देखा। चलो एक और बकरा फंसा! उन्होंने सोचा। यह भी बहुत ज्यादा दिन नहीं टिकंगा! उन्होंने जोर से कहा, “क्या तुम्हें नौकरी की शर्तें पता हें?” शेख ने अपना सिर हिलाया। “जी सरकार! बीस रूपए महीना तनख्वाह और साथ में मुफ्त खाना और सोने की जगह।” “इसके बदले में तुम्हें जो भी काम दिया जाएगा उसे तुम्हें करना होगा,” काजी ने कडे शब्दों में कहा। “में तुम्हें नोकरी से नहीं निकालूंगा। परंतु अगर तुमने नौकरी छोड़ी तो तुम्हें उस महीने की तनख्वाह नहीं मिलेगी। साथ में में तुम्हाश थोड़ा सा कान भी कुतरूंगा जो तुम्हें सारी जिंदगी तुम्हारे बेकार काम की याद दिलाएगा! आयी बात समझ में? क्‍या तुम्हारे कोई सवाल हें?” “सिर्फ एक सरकार, शेख ने कहा। “अगर आप मुझे नौकरी से निकालेंगे, तो... ” “वो कभी नहीं होगा!” काजी ने उसकी बात को बीच में काटते हुए कहा। द “लेकिन अगर ऐसा हुआ तो में आपसे एक साल की तनख्वाह लूंगा और साथ में आपके कान का थोडा सा टुकड़ा भी कुतरूंगा! ” काजी का मुंह लटक गया| किसी ने भी आज तक उनसे इस तरह की बात कहने की जुरत नहीं करी थी। यह लड़का सच में बिल्कुल ही बेवकूफ होगा! “चलो ठीक है, उन्होंने रुखाई से कहा। “मुझे तुम्हारी शर्ते मंजूर हैं। अब अंदर जाओ। बेगम साहिबा तुम्हें काम के बारे में बता देंगी।” शेख को इस नोकरी में लगभग सभी काम करने थे - घर की झाड़ू और सफाई, कपडे धोना, बर्तन मांजना, बाजार जाना और काजी के तीन साल के बेटे की देखभाल करना। शेख हर आदेश का मुस्कुराते हुए अपनी धीमी गति से पालन करता। उसका नतीजा यह होता कि किस्सा काजी का -। 3] कभी, कोई भी काम पूरा नहीं होता था। जब काजी की पत्नी उसे बर्तन मांझने के लिए बुलातीं तो वो अधूरे धुले कपड़े छोड़कर वहां चला जाता। वो बर्तन भी आधे धुले छोड देता क्योंकि तब तक बाजार जाने का वक्‍त हो जाता। “इस बार तुमने कितने बड़े बेवकूफ को पकडा है!” काजी की पत्नी शिकायत के लहजे में कहतीं थीं। “एक भी काम ऐसा नहीं है जो वो ठीक से करता हो। “सीख जाएगा, काजी जवाब में कहते। “या फिर वो काम छोड देगा। बस थोड़ा धैर्य रखो ओर उससे जी-तोड़ काम लो।” रात हाने तक शेख थककर चूर-चूर हो जाता। एक रात जब शेख सपने में दूल्हा बना हुआ था तभी काजी ने आकर उसे झकझोर कर जगाया। “देखो, जरा बच्चे को पेशाब कराना हैं,” काजी ने कहा। “उसे बाहर ले जाकर घर के पीछे नाली के ऊपर बैठा दो।” शेख को अपने सुहाने सपने में दखल डालने पर बड़ा गुस्सा आया। परंतु वो उठा और काजी के बेटे को बाहर ले गया। बाहर अंधेरा था और तेज हवा चल रही थी। बच्चा शेख से कसकर चिपट गया। “क्या तुमने कभी भूत देखा है?” शेख ने लड़के से पूछा। यह सुनकर लड़का शेख से और जोर से चिपट गया। “घबराओ नहीं,” शेख ने उससे कहा। “मुझे नाली में कुछ तैरता नजुर आ रहा है। परंतु वो भूत नहीं हो सकता। क्योंकि भूतों को तैरना नहीं आता।” यह सुनकर लड़का दहाड़े मार कर सेता हुआ वापिस घर में अपनी मां के पास भागा। शेख फिर से उस सपने का मजा लेने लगा जिसमें वो एक दूल्हा बना था। इस बीच में काजी के बेटे ने अपनी मां के बिस्तर को गीला ही कर दिया! बेगम तो आग-बबूला हो उठीं। “इस बेवकूफ से. मेरा पिंड छुड़ाओ! ” उन्होंने अगले दिन सुबह के समय अपने पति से कहा। “यह




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