श्रेष्ठ हिंदी कहानियाँ -भाग 2 | SHRESHTA HINDI KAHANIYAN PART 2

SHRESHTA HINDI KAHANIYAN PART 2 by डॉ लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय - Dr. Lakshisagar Varshneyपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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डॉ लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय - Dr. Lakshisagar Varshney

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भीष्म साहनी भटकतो राख गाँव में फसल कटाई पूरी हो चुकी थी । हँसते-चहकते किसान घरो को लौट रहे थे । भरपुर फसल उतरी थी। किसानों के कोठे श्रनाज से भर गए थे । गृहिणियों के होठो पर सगीत' की घुने फूट रही थी । दूरब.र तक फैली घरती की कोख इससे भी बढिया फसल देने के लिए मानों कसंससा रही थी । रात उतर आई थी और घर-घर मे लोग खुशियाँ मना रहें थे । जब एक धर की खिडको में खडी एक किसास युवती, जो देर तक मन्त्र-मुस्ध-सी बाहर का दुद्य देखे जा रहो थी, सहसा चिल्ला उठी, दिखो तो खेत में जगह-जगह यह क्या चमक रहा है ? उसका युवा पति भागकर उसके पास झाया | बाहर खेत में जगह-जगह भिलमिल-भिलमिल करते जैसे सोने के कश चमक रहे थे । यह क्या भिलमिला रह हैं? कया ये सचमुच सोने के करा हैं? पत्नी नें बडी व्यग्रता से पूछा । झ्ोता कभी यो भी चमकता है ? नही, यह सोना नही है ।' फिर क्‍या है ?”




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