बाबूजी का भारत मित्र , वर्ष 5, अंक 1 | BABUJI KA BHARATMITRA, VARSH 5, ANK 1
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
52
श्रेणी :
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बालमुकुन्द गुप्ता - BALMUKUND GUPTA
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गीत-नवगीत»/कविताएँ
मा!
माँ! मुझे शिकवा है तुझसे क्यों बनी अबला रही ?
सत्य है यह खा-कमाती, सदा से सबला रही।
खुरदरे हाथों से टिक्कड़ नोन के संग जब दिए।
लिए चटखारे सभी ने, साथ मिलकर खा लिए।
तूने खाया या न खाया कौन कब था पूछता?
तुझमें भी इंसान है यह कौन-कैसे बूझता?
यंत्र सी चुपचाप थी क्यों आँख क्यों सजला रही ?
माँ! मुझे शिकवा है तुझसे क्यों बनी अबला रही ?
काँच की चूड़ी न खनकी, साँस की सरगम रुकी ।
भाल पर बेंदी लगाई, हुलस कर किस्मत झुकी |
बाँट सपने हमें अपने नित नया आकाश दे।
परों में ताकत भरी श्रम-कोशिशें अहिवात दे।
शिव पिता की है शिवा तू शारदा-कमला रही ?
माँ! मुझे शिकवा है तुझसे क्यों बनी अबला रही ?
इंद्र सी हर दृष्टि को अब हम झुकाएँ साथ मिल।
ब्रह्म को शुचिता सिखायें पुरुष-स्त्री हाथ मिल।
राम को वनवास दे दें दुःशासन का सर झुके।
दीप्ति कुल की बने बेटी संग हित दीपक रुके।
सचल संग सचला रही तू अचल संग अचला रही ।
माँ! मुझे शिकवा है तुझसे क्यों बनी अबला रही ?
-संजीव सलिल
204, विजय अपार्टमेंट, जबलपुर
14
रहने दो तुम मौन मुझे, मुखरित होने का श्राप न दो |
विजड़ित होंठ खोल दूँगा तो, पीर पराई हो जाएगी।।
सिखा दिया है क्रूर समय ने
घूँट-घूँट कर पीड़ा पीना
जिसको सब कहते हैं मरना
उसको मैंने जाना जीना
अभिसारों का नाम न लो, पुलकित होने का श्राप न दो।
पथ से विलग डोल दूँगा तो, पीर पराई हो जाएगी।।
आँखों में आँजा विषाद को
मुस्कानों संग दुख को पाला
पग-पग पर संदेह मिले हैं
उनको विश्वासों में ढाला
रहने दो सच को सच प्रिय, कल्पित होने का श्राप न दो।
सपनों का अगर मोल दूँगा तो, पीर पराई हो जाएगी।।
करता नहीं है ये मन मेरा
खुशियों के द्वारे पर जाऊँ
क्षणिक सुखों के हेतु किसी के
आगे दोनों कर फैलाऊँ
किंचित उचित भी रहने दो, अनुचित होने का श्राप न दो ।
हृद में आस घोल दूँगा तो, पीर पराई हो जाएगी।।
-डॉ. सतीश चन्द्र 'राज'
तितिक्षा, 10/33, घोरावल, सोनभद्र
9956635847
बाबू जी का भारतमित्र
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