छोटा जादूगर | CHOTA JADUGAR

CHOTA JADUGAR by जयशंकर प्रसाद - jayshankar prasadपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/110/2016 मेरी माँ यहीं है न! अब उसे अस्पताल वालों ने निकाल दिया है। मैं उतर गया। उस झोंपड़ी में देखा तो एक स्त्री चिथड़ों से लदी हुई काँप रही थी। छोटे जादूगर ने कंबल ऊपर से डालकर उसके शरीर से चिमटते हुए कहा, माँ! मेरी आँखों से आँसू निकल पड़े। न बड़े दिन की छुट्टी बीत चली थी। मुझे अपने ऑफिस में समय से पहुँचना था। कलकत्ते से मन ऊब गया था। फिर भी चलते-चलते एक बार उस उद्यान को देखने की इच्छा हुई | साथ-ही-साथ जादूगर भी दिखाई पड़ जाता तो और भी.... मैं उस दिन अकेले ही चल पड़ा। जल्द लौट आना था। दस बज चुके थे। मैंने देखा कि उस निर्मल धूप में सड़क के किनारे एक कपड़े पर छोटे जादूगर का रंगमंच सजा था। मैं मोटर रोककर उतर पड़ा। वहाँ बिल्ली रूठ रही थी। भात्रू मनाने चला था। ब्याह की तैयारी थी, यह सब होते हुए भी जादूगर की वाणी में वह प्रसन्‍नता की तरी नहीं थी। जब वह औरों को हँसाने की चेष्टा कर रहा था, तब जैसे स्वयं कॉप जाता था। मानो उसके रोएँरो रहे थे। मैं आश्चर्य से देख रहा था। खेल हो जाने पर पैसा बटोरकर उसने भीड़ में मुझे देखा। वह जैसे क्षण भर के लिए स्फूर्तिमान हो गया। मैंने उसकी पीठ थपथपाते हुए पूछा, आज तुम्हारा खेल जमा क्यों नहीं? माँ ने कहा है कि आज तुरंत चले आना। मेरी अंतिम घड़ी समीप है। अविचल भाव से उसने कहा। तब भी तुम खेल दिखलाने चले आए! मैंने कुछ क्रोध से कहा। मनुष्य के सुख-दु:ःख का माप अपना ही साधन तो है। उसके अनुपात से वह तुलना करता है। उसके मुँह पर वहीं परिचित तिरस्कार की रेखा फूट पड़ी। उसने कहा, क्यों न आता? और कुछ अधिक कहने में जैसे वह अपमान का अनुभव कर रहा था। क्षण भर में मुझे अपनी भूल मालूम हो गई। उसके झोले को गाड़ी में फेंककर उसे भी बैठाते हुए मैंने कहा, जल्दी चलो। मोटरवाला मेरे बताए हुए पथ पर चल पड़ा। कुछ ही मिनटों में मैं झोंपड़े के पास पहुँचा | जादूगर दौड़कर झोंपड़े में माँ-माँ पुकारते हुए घुसा। मैं भी पीछे था, किंतु स्त्री के मुँह से, 'बे..' निकलकर रह गया। उसके दुर्बल हाथ उठकर गिर गए। जादूगर उससे लिपटा रो रहा था। मैं स्तब्ध था। उस उज्ज्वलत्र धूप में समग्र संसार जैसे जादू-सा मेरे चारों ओर नृत्य करने लगा। शीर्ष पर जाएँ 44




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