खेल भावना | KHEL BHAVNA

KHEL BHAVNA by न्यूगेन कोंग होआन - NYUGEN KONG HUANपुस्तक समूह - Pustak Samuhरामकृष्ण पाण्डेय -RAMKRISHN PANDEY

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रामकृष्ण पाण्डेय -RAMKRISHN PANDEY

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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०), में है। मुझ पर दया कीजिये!” को ५ क्र है इ “तुम दया की भीख चाहे जितनी मांगो, अगर मैं तुम पर दया ५ ( करने लगा तो मुझ पर कौन दया करेगा? और समझ लो तुम अगर | खुद वहां नहीं पहुंचे तो मेरे आदमी घसीट ले जाएंगे। समझे? ४४ ऐ) श्रीमती गाई ने अपने साथ लाये सुपारी के गुच्छे को बड़ी रब ५ ह ५, ग़नी से मेज पर रखा और फिर दरवाजे पर उकड़ूं बैठ गयी। परेश ८ में कान खुजाते हुए उसने कहा- / ““हुजूर ' है। जाने की हालत में कतई नहीं है। हट «७ हुजूर मेरा पति बीमार है। जा (४ पर आपकी डांट से डरता है, इसीलिए खुद नहीं आया। मेरी विनती 40 9, है हुजूर कि आप इस बार उसको छोड़ दें। इतना तो आप कर ही ५ सकते हैं अपने अधिकार का उपयोग करके ।”' 5 “देख! तुझे समझना चाहिए कि शासन का मामला वैसे ही ६ न प नहीं चलता जैसे औरतों का।'' ) ४/7॥ . “क्या आप उसकी जगह गांव के किसी और आदमी को नहीं ६; ६ भेज सकते? मान जाइये हुजूर, वह सचमुच बीमार है। मैं वायदा ' € करती हूं कि अगली बार वह जरूर जायगा।” रे ४ “जाना तो पड़ेगा ही, चाहे मर ही क्‍यों नहीं रहा हो। आखिर ह ९ यह जिलाधीश का हुक्म है। अगर बीमारी के बहाने सबको छोड़ दें ; ४) )॥ तो मैच क्या कुत्ते-बिल्ली देखेंगे? ! / के “ठीक रहता तो चुपचाप चला जाता । यहां से शहर है भी (6 (तो नौ किलोमीटर और फिर धूप तो उसे मार ही डालेगी।” ४0 “मुझे इसकी कोई परवाह नहीं है, यह तुम्हारा अपना मामला ९४ 44 है । बहुत हो गया। अब मैं तुम्हारी कोई बात सुनना नहीं चाहता।'' श “क्या में उस दिन बाजार न जा कर उसकी जगह जा सकती |




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