मुसीबत की हार | MUSEEBAT KI HAAR
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
197 KB
कुल पष्ठ :
9
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
दिविक रमेश - DIVIK RAMESH
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)8/10/2016
फूल दादा : हाँ आती तो हैं। कभी-कभी मेरे पास से भी गुजरी हैं। (एक दिशा में हाथ करते हुए) शायद उधर से आती
हैं - काम काज वाला गीत गाती हुईं! उन्हें देखकर मन खुश हो जाता है। फिर वे चली जाती हैं। दोबारा आने के
लिए।
बच्ची : /लाचार) तो अब मैं क्या करूँ फूल दादा?
फूल दादा : तुम जाओ नदी के पास। वह दूर-दूर तक बहती है। शायद वह जानती हो तुम्हारे घर का पता। पक्षियों
से सुना है (संकेत करते हुए) उस ओर ही तो है प्यारी-सी नदी।
बच्ची : अच्छा चलती हूँ नदिया के पास।
फूल दादा : हाँ यही ठीक रहेगा। जरा अपनी नाक तो इधर लाना। (हँसते हुए) सबसे अच्छी वाली सुगंध तो भर दूँ
तुम्हारी नाक में।
बच्ची : धन्यवाद फूल दादा। सचमुच बहुत अच्छी खुशबू है।
(नन््ही बच्ची चल पड़ती है। फूल दादा जमहाई लेते हुए देखते रहते हैं। /
दृश्य - पाँच
(थोड़ा अँधेरा। नदिया का किनारा। हर ओर शांति। बस बहने की कलकल आवाज। बच्ची थोड़ी परेशान। )
बच्ची : नदिया चाची, ओ नदिया चाची सो गई क्या?
नदी : कौन? अरे तुम! इतनी नन््हीं बच्ची! इस समय यहाँ। अकेली?
बच्ची :
हाँ नदिया चाची
माँ ने समझाया था
पर कहाँ मानी थी
जिद मैंने ठानी थी
आकर यहाँ भी
बात नहीं मानी थी।
दूर-दूर निकल गई
की मनमानी थी
रह गई अकेली हूँ
फूल दादा ने भेजा है
4/9
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