मुसीबत की हार | MUSEEBAT KI HAAR

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दिविक रमेश - DIVIK RAMESH

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/10/2016 फूल दादा : हाँ आती तो हैं। कभी-कभी मेरे पास से भी गुजरी हैं। (एक दिशा में हाथ करते हुए) शायद उधर से आती हैं - काम काज वाला गीत गाती हुईं! उन्हें देखकर मन खुश हो जाता है। फिर वे चली जाती हैं। दोबारा आने के लिए। बच्ची : /लाचार) तो अब मैं क्या करूँ फूल दादा? फूल दादा : तुम जाओ नदी के पास। वह दूर-दूर तक बहती है। शायद वह जानती हो तुम्हारे घर का पता। पक्षियों से सुना है (संकेत करते हुए) उस ओर ही तो है प्यारी-सी नदी। बच्ची : अच्छा चलती हूँ नदिया के पास। फूल दादा : हाँ यही ठीक रहेगा। जरा अपनी नाक तो इधर लाना। (हँसते हुए) सबसे अच्छी वाली सुगंध तो भर दूँ तुम्हारी नाक में। बच्ची : धन्यवाद फूल दादा। सचमुच बहुत अच्छी खुशबू है। (नन्‍्ही बच्ची चल पड़ती है। फूल दादा जमहाई लेते हुए देखते रहते हैं। / दृश्य - पाँच (थोड़ा अँधेरा। नदिया का किनारा। हर ओर शांति। बस बहने की कलकल आवाज। बच्ची थोड़ी परेशान। ) बच्ची : नदिया चाची, ओ नदिया चाची सो गई क्या? नदी : कौन? अरे तुम! इतनी नन्‍्हीं बच्ची! इस समय यहाँ। अकेली? बच्ची : हाँ नदिया चाची माँ ने समझाया था पर कहाँ मानी थी जिद मैंने ठानी थी आकर यहाँ भी बात नहीं मानी थी। दूर-दूर निकल गई की मनमानी थी रह गई अकेली हूँ फूल दादा ने भेजा है 4/9




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