नन्ही जलपरी | NANHI JALPARI

NANHI JALPARI  by अरविन्द गुप्ता - ARVIND GUPTAपुस्तक समूह - Pustak Samuhलिंडा न्यूबेरी - LINDA NEWBERRY

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“तब,” चुडैल ने कहा, “पहले तुम्हें मेरा हिसाब चुकाना होगा। तुम्हारी जैसी सुरीली आवाज़ सारी दुनिया में किसी और की नहीं है। इस काम के लिए तुम्हें मुझे अपनी मधुर आवाज़ देनी होगी। तुम अपनी आवाज़ से राजकुमार को अपनी मोह-माया में नहीं फँसा पाओगी।” “परंतु अगर मेरी आवाज़ ही चली जाएगी,” नन्‍हीं जलपरी ने कहा, “तो फिर मेरे पास बचेगा ही क्या?” “तुम्हारा सुंदर चेहरा,” चुडेल ने ताना कसते हुए कहा, “तुम्हारा सुंदर शरीर। तुम्हारी सजीव आँखें। क्या ये कम नहीं हैं किसी आदमी को फंसाने के लिए? क्‍या तुम अपना इरादा बदल रही हो, क्यों? पर अब यह ठीक नहीं है।” “मैं इस सबके लिए राज़ी हूं!” नन्‍्हीं जलपरी नजडीक ने चुनौती को स्वीकार करते हुए कहा। उसके बाद चुडैल हँसी और उसने कुछ साँपों को लेकर एक बड़ी कढ़ाई को साफ़ किया। फिर उसने अपनी छोटी उँगली को काट कर उसका खून कढ़ाई में गियाया। उसने कढ़ाई में और बहुत-सी चीज़ें डालीं --समुद्री घोंषे, सड़ी खरपत और मेंढक को गंदगी। कुछ देर में ही कढ़ाई में से बदबूदार भाप निकलने लगी जो हँसते हुए चेहरों जेसी दिख रही थी। अंत में जाकर काढा तैयार और साफ़ हुआ।




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