गिरगिट का सपना | GIRGIT KA SAPNA

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मोहन राकेश - Mohan Rakesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/10/2016 पंख बहुत चमकीले थे। जब चाहो उन्हें झपकाने लगो, जब चाहे सीधे कर लो। उसने आसमान में कई चक्कर लगाए और खूब काँय-कॉँय की। पर तभी नजर पड़ी, नीचे खड़े कुछ लड़कों पर जो गुलेल हाथ में लिए उसे निशाना बना रहे थे। पास उड़ता हुआ एक कौवा निशाना बनकर नीचे गिर चुका था। उसने डरकर आँखें मूँद लीं। मन ही मन सोचा कि कितना अच्छा होता अगर वह कौवा न बनकर गिरगिट ही बना रहता। पर जब काफी देर बाद भी गुलेल का पत्थर उसे नहीं लगा, तो उसने आँखें खोल लीं। वह अपनी उसी जगह पर था जहाँ सोया था। पंख-वंख अब गायब हो गए थे और वह वही गिरगिट का गिरगिट था। वही चूहे-चमगादड़ आसपास मण्डरा रहे थे और साँप अपने बिल से बाहर आ रहा था। उसने जल्दी से रंग बदला और दौड़कर उस गिरगिट की तलाश में हो लिया जिसने उसे नींद की पत्ती खाने की सलाह दी थी। मन में शुक्र भी मनाया कि अच्छा है वह गिरगिट की जगह और कुछ नहीं हुआ, वरना कैसे उस गलत सलाह देने वाले गिरगिट को गिरगिटी भाषा में मजा चखा पाता! शीर्ष पर जाएँ 33




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