मूर्खता की नदी | MOORKHTA KI NADI

MOORKHTA KI NADI by पुस्तक समूह - Pustak Samuhसुधा भार्गव - SUDHA BHARGAVG

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सुधा भार्गव - SUDHA BHARGAVG

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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86/23/2016 वह बड़ी लगन से अक्षर माला पुस्तक खोल कर बैठ गया। तभी सुनहरी किताब परी की तरह फर्र-फर्र उड़ कर आई। बोली - मुरली, तुम्हें पढ़ता देख कर हम बहुत खुश हैं। अब तो हँस-हँसकर गले मिलेंगे और खुशी के गुब्बारे उड़ायेंगे मुरली के गालों पर दो गुलाब खिल उठे और उनकी महक चारों तरफ फैल गई। शीर्ष पर जाएँ 44




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