मजाज़ और उनकी शायरी | MAJAJ AUR UNKI SHAIYARI

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प्रकाश पंडित - Prakash pandit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मजाज़ प्‌ 'मजाज़ की जिन्दगी के हालात बडे दुःखद थे। कभो पूरी अलीगढ़ यूनिवर्सिटी, जहां से उसने बी० ए० किया, उस पर जान देती थी । गर्ल्स कालिज में हर जवान पर उसका ज़िक्र था । उसकी अ्रा्खें कितनी सुन्दर है ! उसका कद कितना अच्छा है ! वह कक्‍्या करता है ? कहाँ रहता है ? किसी से प्रेम तो नहीं करता--थे लडकियों के प्रिय विषय थे और वे अपने कहकहो, चूड़ियो की खनखनाहट और उडते हुए दोपदों की लहरो मे उसके दोर ग्ुनग्रुनगाया करती थी । लेकिन लडकियों का वही चहेता शायर जब १६३६ ई० में रेडियो की ओर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका “आवाज का सम्पादक बनकर दिल्‍ली आया तो एक लडकी के हो कारण उसने दिल पर ऐसा घाव खाया जो जीवन-भर अच्छा न हो सका । एक वर्ष बाद ही नौकरी छोडकर जब वह अपने शहर लखनऊ को लौठा तो उसके सम्बधियों के कथनानुसार वह प्रेम की ज्वाला में बुरी तरह फूंक रहा था और उसने बेतहाशा पीनी शुरू कर दी थी । इसी सिलसिले मे १६४० ई० में उप्त पर नर्वेंस ब्र कडाउन का पहला गञ्राक्रमण हुआ और यह रट लगी कि फलों लडकी मुमसे शादी करना चाहती है लेकिन रकीब (प्रतिद्वन्द्री) जहर देने की फिक्र मे है । यहा यह बताना (बेमीका न होगा कि मजाज़' ने दिल्‍ली के एक चोटी के घराने को श्रत्यन्त सुन्दर और इकलौती लड़की से प्रेम किया था, लेकिन उसके विवाहिता होने के कारण यह बेल मंढे न चढ सकी थी और उसने यह कहते हुए दिल्‍ली से विदा ली थी कि .




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