ह्रदय की परख | HRIDAY KI PARAKH
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
चतुरसेन वैद्य - CHATURSEN VAIDYA
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दूसरा परिच्छेद १५
घोरेन्घोरे उज्ञका जंगल से घूसना, कुंज में बैठकर फूल गूँथना
ओर पक्तियों की चदचहाहट को ध्यान से सुनना प्रायः छूट ही
स्रा गया | अब उसका अवकाश का साथ समय जस अंधेरो
गुफा मे था उसी पींपल के बृच्ष के नोचे पुस्तक पढ़ने में लगता था ।
जब दोपहर में सोजन के बाद सारे गाँव में सन्नाटा छा जाता,
लोग विश्राम करने लगते, तव सरला वहां बेठो-बैठो पुराने
प्थों के पत्र उल्लह्म-पत्ञटा करती थी | लोऋनाथ जब खेत
से घर छौटकर पुकारता--“बेटी !”, तो देखता, छार बाहर
से बंद है, बेटी वहाँ नहीं है । तब वह चहीं गुफा में जाकर
देखता, उसकी बेटी स्थिर भाव से किखीं पत्र पर नजर डाल
रहो है। तोछनाथ सधुर तिरस्कार से कहता-- यह क्या पागल-
पन है सरत्ता ! खाना-पीना कुछ नहों, जब देखो तस्रो कार में
आँखे गड़ाए है---इन काग़ज़ों में क्या रक्खा है ? सरत्ता सर-
लता से उठ खड़ी होती, और बूढ़ें की डेंगल्ली पकड़कर कहती---
“काह काका ! भोजन तो बनाकर रख आई थो, तुमते अभी
नहीं खाया ११?
“कहाँ ? तू तो यहाँ बैठो हैं !” फिर घर आंकर दोनो
भोजन करते ।
गाँव के लोग न-ज्ाने क्यों, छुछ सरक्ला से छरते-से थे ।
उसकी दृष्टि कुछ ऐसी थी कि सरला से न कोई आँख दी मिला
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