साक्षात्कार - अरविन्द गुप्ता | INTERVIEW OF ARVIND GUPTA SCROLL

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आशुतोष उपाध्याय - Aashutosh Upadhyay

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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श्रेया रॉय चौधरी - SHREYA ROY CHAUDHARY

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्या इसी दौर में आपने अपनी वेबसाइट बनाकर वीडिओ पोस्ट करने शुरू कर दिए थे? जैसे ही मैं पुणे पहुंचा, जाने-माने खगोलविद प्रो. जयंत नारलिकर ने मुझे इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रो-फिजिक्स के बाल विज्ञान केंद्र में काम करने का न्योता दिया. उन्होंने बच्चों के लिए मराठी में ढेर सारी पुस्तकें लिखी हैं और उनका सपना था कि इंस्टीटयूट में बच्चों के लिए एक छोटा सा केंद्र हो ताकि बचपन से ही उनके भीतर विज्ञान के प्रति प्रेम जागृत किया जा सके. मैंने पूरे 11 साल यहां काम किया और एक शानदार टीम तैयार हुई. इन 11 सालों में मेरे साथ विदुला म्हैसकर रहीं, जिन्होंने स्टेनफोर्ड विश्विद्यालय में मॉलिक्यूलर बायोलॉजिस्ट के तौर पर चार साल पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च करने के बाद इस केंद्र को चुना. इसके बाद अन्ना हजारे के गांव रालेगांव सिद्धि के पास के अशोक रूपनेर भी हमारे साथ जुटे. हमने मिलकर कबाड़ की मदद से 1500 से ज्यादा खिलौने बनाए- हम इन्हें विज्ञान के प्रयोग नहीं कहते. इनमें 110 खिलौने प्लास्टिक की बोतलों की मदद से बने हैं, 60 पेय के डब्बों से. आप तमाम किस्म के आधुनिक कबाड़ को हैरतअंगेज खिलौनों में बदल सकते हैं, जो चलते, उड़ते या फिर आवाज पैदा कर सकते हैं. हमारी वेबसाइट में इन्हें बनाने के सचित्र निर्देश उपलब्ध हैं. हम अब तक 8,600 से ज्यादा वीडिओ यू ट्यूब में डाल चुके हैं. ये अंग्रेजी, मराठी व हिंदी सहित 18-20 अन्य भाषाओं में हैं. इन्हें चाहने वालों ने 100 से ज्यादा वीडिओ को चीनी और 300 से ज्यादा को स्पेनिश भाषा में डब किया है. हिंदी में ये वीडिओ मेरी और मराठी में म्हैसकर की आवाज में हैं. पीके नानावती, जिन्होंने नरेन्द्र दाभोलकर के साथ भी काम किया था, 1000 वीडियो को कनजड़ में तैयार कर चुके हैं. इनके अलावा वेबसाइट में हिंदी, मराठी व अंग्रेजी में 5000 से ज्याद महत्वपूर्ण किताबें उपलब्ध हैं, जो शिक्षा, पर्यावरण, युद्ध विरोधी साहित्य, विज्ञान, गणित आदि विषयों पर लिखी गयी हैं. कक्षाओं में डिजिटल बोर्ड और ई-कंटेंट आदि टेक्नोलॉजी के माध्यम से किए जा रहे नवाचार को आप कैसे देखते हैं? ख़ास तौर पर सरकार की ओर से की जा रही इस तरह की पहल को? डिजिटाइजेशन के नाम पर अब तक ज्यादातर पाठ्यपुस्तकों को स्कैन करके ही पेश किया जा रहा है. यह कतई रचनात्मक नहीं बल्कि एक तरह से बकवास है. लोग दिमाग़ का ज़रा भी इस्तेमाल नहीं करते. इसके विपरीत हमने विज्ञान की परम्परागत श्रेणियों में हर विषय पर खिलौने बनाए हैं. उदाहरण के लिए ध्वनि पर हमने 50 खिलौने बनाए हैं. शिक्षक और बच्चे इनमें से अपने स्तर और ज़रूरत के अनुसार खिलौने चुन सकते हैं. हमें अपने कचरे के डिब्बे में भी झांकना चाहिए. इसमें पड़ी सामग्री का बच्चों के लिए बड़ा महत्त्व हो सकता है और इन्हें गरीब से गरीब बच्चों तक पहुंचाया जा सकता है. यह नवाचार का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है. लेकिन मौजूदा सरकार की एक पहल बड़े महत्त्व की है- अटल जोड़-तोड़ प्रयोगशाला. ये प्रयोगशालाएं पाठ्यक्रम आधारित नहीं है और उनका उद्देश्य बच्चों को अपने हाथों से तमाम तरह की चीज़ें बनाने का मौका देना है. अगर बच्चे असफल होते हैं तो वे अपने गलतियां सुधारकर सफलता हासिल कर सकते हैं. होशंगाबाद के बाद आपने कई शिक्षाविदों के साथ काम किया, जिन्होंने शिक्षा नीतियों के निर्माण में योगदान दिया और सरकार के सलाहकार रहे. मैं आज ही अनिल सद्गोपाल को लिखा. प्रो. यशपाल ने मुझे अपनी पहली किताब तैयार करने के लिए फ़ेलोशिप दिलवाई. बाद में 2005 में वह राष्ट्रीय पाठ॒यचर्या की रूपरेखा तैयार करने वाली समिति के अध्यक्ष बने. एकलव्य के सह-संस्थापक विनोद रैना मेरे प्रकाशक थे. बाद में हमने भारत ज्ञान विज्ञान समिति में मिलकर काम किया. रैना इस संस्था के भी सह-संस्थापक थे और इसके लिए मैंने 100 पुस्तकों की एक शृंखला तैयार की. बाद में उन्होंने शिक्षा के अधिकार के लिए भी काम किया. विनोद के साथ मेरी लंबी साझेदारी रही.




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