मोरंगे - अगस्त 2009 | MORANGE - AUG 2009

MORANGE - AUG 2009 by अज्ञात - Unknownपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बात ले चीत लै दादाजी का दस्ताना एक थे बूढ़े दादाजी | जंगल से होकर कहीं जा रहे थे। पीछे-पीछे उनका कुत्ता भाग रहा था। चलते-चलते दादाजी के हाथ का दस्ताना गिर गया। इस बीच कहीं से एक चुहिया दौड़ती आई और दादाजी के दस्ताने में छिपकर बैठ गई और जरा दम लेकर बोली-'अब मैं यहीं रहूँगी।' इसी वक्‍त एक मेंढक फुदकता हुआ वहाँ आ पहुँचा। उसने आवाज दी- दस्ताने में कौन रहता है ? अरे में हूँ चुनमुन चुहिया लेकिन तुम कौन हो ? मैं फुदकू मेंढक हूँ। मुझे भी अंदर आ जाने दो! ठीक है, अंदर आ जाओ। इस तरह एक से दो हो गए। अचानक भागता हुआ एक खरगोश वहाँ आ पहुँचा और दस्ताने के करीब आकर उसने आवाज दी-*दस्ताने में कौन रहता है ?' अरे हम हैं-'चुनमुन चुहिया,फुदकू मेंढक | लेकिन तुम कौन हो ? मैं उड़न-छू खरगोश हूँ मुझे भी अंदर आ जाने दो! ठीक है,अंदर आ जाओ । अब वे तीन हो गए। ठीक इसी वक्‍त दौड़ती-दौड़ती एक लोमड़ी वहाँ आ पहुँची | दस्ताने के पास आकर उसने आवाज दी- 'दस्ताने में कौन रहता है ?' अरे हम हैं-चुनमुन चुहिया,फुदक्‌ मेंढक और उड़न-छ खरगोश | लेकिन तुम कौन हो कद में हूँ चटक-मटक लोमड़ी। मुझे भी अंदर आ जाने दो॥।' 'ठीक है! अंदर आ जाओ।' इस तरह एक-एक कर वे चार हो गए। इसी समय दौड़ता हुआ एक भेड़िया वहाँ आ पहुँचा। दस्ताने के पास आकर उसने आवाज दी- 'दस्ताने में कौन रहता है ?' अरे हम हैं-'चुनमुन चुहिया,फुदक्‌ मेंढक, उड़न-छ खरगोश और चटक-मटक लोमड़ी! लेकिन तुम कौन हो ?' में हूं भुक्खड़ भेड़िया| मुझे अंदर आ जाने दो!'




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