रामजी जाग उठा | RAMJI JAAG UTHA
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
32
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
डी० बी० मोकाशी - D. B. MOKASHI
No Information available about डी० बी० मोकाशी - D. B. MOKASHI
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एक मणि दे दी। उसे घिसते ही मनचाही चीज मिलने लगी।'
हमेशा की तरह वह कल्पना में मगन हो गयी। पार्वतीजी को
उसने नमस्कार किया है, उनसे बात की है। फिर अपने पति के घर
आने पर पार्वतीजी की दी हुई मणि का चमत्कार उसे दिखाया।
उसका चेहरा खिल गया। पति की खुशी देखकर उसकी आंखों में
पानी भर आया। फिर यह समझ कर कि मणि मानो हाथ में ही हो,
उसने इच्छा प्रकट की कि अर्जुन को एक खूबसूरत सेहतमंद बीबी
मिलनी चाहिए। फिर बहू के आगमन की खुशी में वह डूब गयी।
सब राह देख रहे थे कि कब संतू वाणी पोथी पढ़ना शुरू करेंगे।
गर्दन झुकाकर खांसते हुए वह बोला,
“मित्रो, ध्यान दो! ''
सबने गर्दन हिलायी | केवल रामजी की नजर हिली नहीं। संतू ने
शुरुआत की -
“'ज्ञानेश्वरजी ने ज्ञानेश्वी सुनाकर सारी दुनिया पर अहसान
किया है। कृष्ण ने अर्जुन को मोह से मुक्त किया तो ज्ञानेश्वरजी ने
हमें मुक्त किया। अब हम अमृतानुभव का आस्वाद लेंगे। ' ज्ञान-
अज्ञान भेद कथन ' अध्याय मैं पढ़ता हूं। क्यों जोशीजी ?''
जोशीजी ने गर्दन हिलायी। एक नजर रामजी पर डालकर वह
पोथी देखने लगा। प्रवचन शुरू हुआ।
बस इतना ही हो रहा था कि रामजी के कानों तक शब्दों को
ध्वनि आ रही थी। पर उसका मन तो भटक रहा था। उसके बेटे को
देह अभी तक नहीं मिली थी। वह देह उसे दिख रही थी। लाल सुर्ख
बनी हाल को संड्सी से पकड़ कर जब वह निहाई पर रखता तो
उसका बेटा कैसे धमाधम आघात करता! अभी से उसकी बांहें
15
User Reviews
No Reviews | Add Yours...