राष्ट्र भाषा हिंदी | Rashtra Bhasha Hindi

RASHTRA BHASHA HINDI by खेमचंद्र सुमन - KHEMCHANDRA SUMANपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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क्षेमचंद्र 'सुमन'- Kshemchandra 'Suman'

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ः 3:38] पल इृष्टि सेँमेंने काम किया है। उद्‌ के विरोध का तो मेरे सामने प्रश्न हो ही नहीं सकता। में तो उद्‌ वालों को भी उसी भाषा की “ओर ५ खींचना “चाहूँगा जिसे में रा्टटआाषा कहूँ । और उस खींचने की प्रतिन ८८ क्रिया में स्वभावतः उदू वालों का सत लेकर भाषा के स्वरूप-परि- वर्तन सें भी बहुत दूर तक छुछ निश्चित लिछात के आधार पर जाने को तैयार हूँ । किन्तु जब तक वह काम नहीं होता तब तक इसी से सन्‍्तोष करता हूँ कि हिन्दी द्वारा राष्ट्र के बहुत बड़े अंशों में एकता स्थापित दो । ” आपने जिस प्रकार से काम उठाया है वह ऊपर मेरे निवेदन किये हुए क्रम से बिलकुल अलग है। में उसका विरोध नहीं करता, किन्तु उसे अपना कास नहीं बना सकता । आपने गुजरात के लोगों के मन में दुविधा पेदा होने की बात लिखी है । यदि ऐसा है तो कृपया विचार क़रें कि इसका कारण क्या है। सुके तो यह दिखाई देता है कि गुजरात क्रे लोगों (तथा अन्य प्रान्तों के लोगों) के 'हूदयों में दोनों लिपियों के सीखने का सिद्धान्त घुस नहीं रहा है; किन्तु आपका व्यक्तित्व इस प्रकार का है कि जब आप कोई बात कहते हैं तो स्वभावतः इच्छा होती है कि उसकी पूर्ति की जाय । मेरी भी ऐसी ही इच्छा होती है; किन्तु बुद्धि आपके बताए सार्ग का निरीक्षण करती है और उसे स्वीकार नहीं करती । आपने पेरीन बहन के बारे में लिखा है। यह सच है कि वह दोनों काम करना चाहती हैं । उसमें तो कोई बाघा नहीं है। राष्ट्र सापा-प्रचार-समिति और दिन्दुस्तानीन्प्रचार-सभा के कार्यकर्ताओं में विरोध न हो और वे एक-दूसरे के कामों को उदारता से देखें--इसमें यद्द बात सहायक होगी कि हि० प्र० सभा और रा० प्र० समिति का कास अलग-अलग संस्थाओं द्वारा हों, एक ही संस्था द्वारा न चढहं। एक के सदर य दूसरे के सदस्य हों किन्तु एक ही पदाधिकारी दोनों संस्थाओं के हो से व्यावद्वारिक कठिनाइयाँ और बुद्धि भेद होगा।




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