होठों के नीले फूल | HOTON KE NEELE PHOOL

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प्रियंवद - PRIYANVAD

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/26/2016 जानता है तू यम और यमी भाई - बहन थे। एक दिन यमी ने यम से पूछा, 'तू मेरा कौन है? भाई यम बोला। तेरा धर्म क्या है? यमी ने पूछा। तुझे सुख देना। यम बोला। मुझे रति सुख दे यमी ने याचना की। बूबा। मेरा हाथ कांप गया। उरपोक! खिलखिला कर हंस पडी बूबा, देहातीत होकर सोच एक बार यमी की इस बात को। फिर जीवन दर्शन बना ले _ अपने जीवन के सारे मूल्यों का आधार। | बबा | १ डर हां रे, यमी की इस बात से अचानक उसका जीवन कितना बडा हो गया है। कितना उनमुक्त, व्यापक और स्पष्ट! ऐसा नहीं है क्या? यह दृष्टान्त तो स्वयं में एक दर्शन है। यमी की दृष्टि कितनी निर्भीक और विस्तृत है। जीवन के छोटे - छोटे टुकडों में उत्तीर्ण। तुझको इसलिये बता रही हूं कि केवल तुझसे ही तो बोल पाती हूं। फिर तुझे तो अभी बहुत बडा होना है। सत्य का अन्वेषी, तटस्थ दृष्टि अबी से सीख ले लेकिन पाप! धत्‌। अगर पाप और पुण्य सत्य हैं तो सुख कुछ भी नहीं होता रे! और अगर सुख सत्य है तो पाप - पुण्य का कोई अस्तित्व नहीं है। सुख की नित्यता तो हम निश्चित ही जानते हैं, इसलिये पाप - पुण्य कुछ नहीं है। तो यमी की स्थिति। हां, यमी की स्थिति मान्य है। यमी के जीवन की स्पष्टता मेरा आदर्श है। और रिश्तों का धर्म? रिश्तों के नाम जीवन को बहुत छोटे छोटे घेरों में बांध देते हैं। आंखों में कपडा बांधे बैल की तरह आदमी उन्हीं घेरों में घूमता रहता है। यह गलत है। एक बार में आदमी क्या सब रिश्ते नहीं भोग सकता? क्या मेरे और तेरे रिश्ते का कोई नाम है? क्या मैं तेरी सब कुछ नहीं हूं? मां, दोस्त, बहन बोल? हां, बूबा। मैं बूबा की हथेली की नीली नसें चूम लेता। तुम मेरी इकलौती आस्था हो, मेरी रक्षिता हो, मेरी कल्याणी। मेरी आवाज क़ांपने लगती। बूबा मेरी निगाहों में तब न जाने कितनी ऊपर उठ जाती। जानी, गंभीर, ममत्वमयी बूबा। आ चलें। बूबा उठ जाती। गुलमोहर की सुर्ख पंखुरियां बूबा के बालो में उलझी होतीं। एक बात पूछू बूबा? मैं ठहर जाता। फिर यम ने क्या किया? उसका कोई महत्व नहीं है रे। देह का अस्तित्व तो कुछ क्षणों का होता है बस। 47




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