कभी शैतानी न करने वाला | KABHI SHAITANI NA KARNE VALA LADKA
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
118 KB
कुल पष्ठ :
3
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अलका सरावगी - Alka Saravagi
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)88/10/2016
इसलिए वह कुछ उदास है। एक बार दादी की किसी बहन ने उसके सामने ऐसा कुछ कह डाला था| तभी से शायद
वह बाहर के लोगों के सामने कभी नहीं आता था। यहाँ तक कि साल में छह-सात बार घर में आने वाली दादाजी की
बहनों ने उसे तीन-फुट से पाँच फुट का होते हुए भी नहीं देखा था। एक बार स्कूत्र से लौटते समय बड़ी बुआजी को
वह मकान में नीचे मिल गया, तो बुआजी ने उसे पहचाना ही नहीं। वह वाकई घर का अद्वश्य बच्चा बन गया था।
सबने तय किया कि गोलू के लिए अपने कमरे से बाहर घर के बाकी लोगों के साथ समय बिताना बहुत जरूरी है।
गोलू की मम्मी इतने तनाव में आ गई कि उन्हें बुखार हो गया। तब गोलू को बदलने की कोशिश करेंगे। उसके
मम्मी-पापा यदि उसे कुछ कहेंगे तो वह शायद खाना-पीना बन्द कर दे। उनकी पिछली कोशिश का यही नतीजा
हुआ था। सबने मित्रकर मोलू को भी बहुत डाटा कि उसके कारण गोलू स्कूत्र में लेट हो जाता था और इसलिए भी
वह ऐसा हो गया था। गोलू शायद बहुत गुस्से में भरा रहता था, पर किसी को कुछ न कहने की आदत के कारण वह
बिलकुल चुप्पा और अकेला रहने लगा था।
वे लोग कुछ करते, इसके पहले सब व्यस्त हो गए। घर में उन्हीं दिनों एक नया मेहमान शामिल हो गया था।
चाची को एक छोटा-सा प्यारा बेटा हुआ। सब उसे देखने अस्पताल जाने लगे, तो देखा कि गोल्ू साथ जाने के लिए
पहले से ही नीचे खड़ा है। अस्पताल में बच्चों को देखने के लिए काँच के सामने बड़ी भीड़ लगी थी। पर गोलू काँच
के सामने से किसी तरह नहीं हटा। वह पूरे समय खड़ा अपने छोटे भाई को तब तक देखता रहा जब तक मिल्रने का
समय खत्म नहीं हो गया। गोलू जब चाची से मिला, तो उन्होंने पूछा, मुन्ना कैसा लगा? गोलू बोला, वो तो
एकदम गोरा है। तब चाची ने कहा, मैं चाहती हूँ कि वह तुम्हारे जैसा बने। इसलिए उसका 'डाक-नाम' 'ग' पर ही
रखूँगी। तुम बताओ कि उसका नाम क्या रखा जाए? सारे बच्चों ने इस बात पर खूब हो-हल्ला मचाया पर गोलू
हँसता रहा। अन्त में तय हुआ कि उसका प्यार का नाम गुलगुल रखा जाए।
इसके बाद की कहानी में भी गोलू की किसी तरह की शैतानी की कोई बात नहीं है। गोलू गुलगुल का इस कदर
ख्याल रखने लगा जैसे वह उसकी दूसरी माँ हो। फुरसत मिलते ही वह चाची के कमरे का चक्कर लगा आता।
उसका टी.वी. देखना लगभग छूट गया था। साल भर का होते-होते गुलगुल गोलू का इस कदर दोस्त बन गया कि
वह गोलू के सिवा किसी के पास जाता ही नहीं था। तीन साल का होते-होते उसने गोलू के कमरे में अपनी चादर-
तकिया जमा लिया था। चाची कितनी भी कोशिश करे, वह गोलू के साथ ही सोता। उसका खाना, नहाना, स्कूल के
लिए तैयार होना कुछ भी गोलू के बिना नहीं होता। गोलू कई बार उससे परेशान होता, पर गुलगुल को कोई फर्क न
पड़ता। पर अगर गुलगुल स्कूल से आने के बाद एक घण्टे तक दिखाई नहीं पड़ता, तो गोलू खुद उसे खोजने चाची
के फ्लैट में पहुँच जाता।
जाहिर है कि गोलू को बदलने के लिए किसी को कुछ करना नहीं पड़ा। वह अब भी कम बोलता है, पर जब बोलता
है, तो उसके मजाक पर जो हँसी का फव्वारा छूटता है, उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता।
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