छोटी आँखों का बड़ा सपना | CHOTI ANKHON KA BADA SAPNA
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
69
श्रेणी :
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मृदुला हालन - MRIDULA HALLAN
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)12 छोटी आंखों का बड़ा सपना
उसी क्षण अरुण ने मन में निश्चय कर लिया कि वे बेटी को पायलट
बनाने की हर सम्भव कोशिश करेंगे।
धीरा जब सातवीं कक्षा में थी तब एक घटना ने उसे दुःख और सुख
दोनों के सागर में एक साथ ढकेल दिया। इतने वर्षों बाद विमला के पुत्र
हुआ। खिलौने जैसा भाई पा कर धीरा खुशी से नाच उठी। बेटे के जन्म के
बाद विमला एकदम बदल गई। उसकी उदासी छू मन्तर हो गई। इतने सालों
बाद बेटा पाकर वह पूरे जतन से उसके लालन-पालन में लग गई। “इसे किसी
की नजर न लग जाए! का सोच उस पर हावी हो गया।
धीरा प्यार से अपने छोटे भाई को देखती तो मां कहती, “...ऐसे
टुकुर-टुकुर मत देख। उसे नजर लग जाएगी।' गोद में लेना चाहे तो, “ना
«नी...गिर जाएगा।' खेलने लगे तो, “अरे...रे...छोड, इसे...इसके हाथ-पांव टूट
जाएंगे।' धीरा भाई से जितना खेलना चाहती, विमला उतना ही. उसे बेटे से
दूर रखती। यही धीरा का सबसे बडा दुःख था।
धीरा यह भी महसूस कर रही थी कि जिस मां ने उसके खिलौनों, कपडों
और शौक की तरफ कभी ध्यान नहीं दिया, वही मां भाई बीनू के लिए आए
दिन नए पकड़े और खिलौने लाते थकती नहीं थी। धीरा ने एक दिन मां से
कह दिया, “मां! आप मेरे लिए तो कभी खिलौने नहीं लाईं।
वीनू को गोद में उछालती विमला ने लापरवाही से कहा, “लडकियों के
इतने नखरे कौन सहे!”'
आज धीरा कुछ जिद में थी, “आप न मुझे भैया से खेलने देती हैं न
भैया के खिलौनों से। मेरा दिल' भी इनसे खेलने को करता है।'
“वीनू की बराबरी करती है,” विमला भड़क उठी, “खबरदार! इसके
खिलौने मत छूना।”'
अपमान और क्षोम से धीरा की आंखें भर आईं।, दूसरे कमरे में आ कर
वह सोच में बैठ गई, लड़के, लड॒की में इतना भेदभाव क्यों? मैं अपनी मर्जी
से तो लड़की नहीं बनी। मां ने ही मुझे जन्म दिया...खुद मां भी तो लड़की
हैं...फिर ऐसा क्यों?!
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