लाखो | LAKHO
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
28
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ने चुन्नीलाल और लाखो को जोड़कर एक किंस्सा सुनाया। नौसा की माई
का देवर था चुन्नीलाल। करीब पैंतालिस वर्ष की उम्र, पतली-लम्बी
कद-काठी, आँखों से उसे कुछ कम ही दिखाई देता | उसकी दो-दो शादियाँ
हो चुकी थीं। पहली बीवी हैजे से मर गई । दूसरी भी धूमधाम से शादी करके
लाई गई। पर एक दिन गहना-गुरिया लेकर वह अपने पुराने यार के साथ
चम्पत हो गई। चुन्नीलाल ने काफ़ी दौड़-धूप की । मान-मनौवल चली |
पंचायत बैठाई गई | पर वह आने को तैयार नहीं हुई । अब चुन्नीलाल अकेला
पड़ गया था। उसके पास थोड़ी बहुत खेती थी । उसके अलावा वह सुबह-शाम
ठाकुर टोले में मेरे यहाँ और कम्पाउंडर साहब के यहाँ पानी भर दिया करता ।
किस्सा यह है कि एक दिन जाड़े के मौसम में लाखो इमली के बगीचे
में बोझ नीचे पटककर बैठी हुई थी | उन दिनों बगीचे में धान का खलिहान
लगा हुआ था। चुन्नीलाल भी खेत से लौटकर उसी बगीचे में अपना धान
सुखा रहा था । कहते हैं कि लाखो चुन्नीलाल को देखकर मुस्की काटने लगी।
फिर दोनों हँस-हँसकर एक-दूसरे से बातें करने लगे । लाखो खूब खुश थी।
उन दोनों के इस व्यवहार को गाँव के कई स्त्री-पुरुषों ने देखा। बस, यह
ख़बर आग की तरह गाँव भर में फैल गई | लोग कहने लगे, अरे, ई देखने
में ही पगली लगती है, पर है बहुत चालाक | देखो, चुन्निया को कैसे फेँसा
लिया। इस चुन्निया का क्या, दो बीवी रख चुका है, एक और रख लेगा।'
मैंने नौसा की माई को बुलवाया और कहा, बहुत चन्दन-टीका लगाए घूमती
हो, कुछ लाखो के बारे में भी सोचा ? अरे, इसकी चुन्निया से शादी करवा
_ दो। चुनिनिया भी बे-औरत, बे-औलाद है । उसको एक सहारा मिल जाएगा
लाखो / अमरकान्त 13
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