डेविड ऑसबरा और नीलबाग़ स्कूल | DAVID HORSBURG AUR NEELBAGH SCHOOL
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
70
श्रेणी :
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राजाराम भादू - RAJARAM BHADU
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डेविड : हां, मेरा विचार मूलतः: ग्रामीण विद्यालय का था। लेकिन इस पर
सभी तरह के प्रभाव देखे जा सकते हैं, इवान इलिच से लेकर ए.एस. नील तक।
में एक ऐसा स्कूल चाहता था जो मौजूदा स्कूलों से बिल्कुल हटकर हो।
रोजलिंड : कदाचित् इसलिए कि आपके विचार से मौजूदा स्कूल ठीक
ढंग से नहीं चल पा रहे थे ?
डेविड : हां, एक हद तक मैं यह कह सकता हूं कि वे ठीक ढंग से काम
नहीं कर रहे हैं।
रोजलिंड : तो जब आपने नीलबाग शुरू किया, आपको क्या लगता था कि
इसकी कौन-सी बात बच्चों को आकर्षित करेगी ?
डेविड : सबसे पहले आपको यह बात ध्यान में रखनी होगी, जो नील ने
कही थी कि सभी स्कूल जेल होते हैं और बच्चे वहां जाने को विवश होते हैं। तो,
मैं एक ऐसा स्कूल चाहता था जहां बच्चों को 'जाएं या न जाएं ' जेसे सवालों पर
सोचने की जरूरत न पड़े। जहां वे जाने, न जाने, आने, न आने का फैसला अपने
मन से कर सकें | इसके लिए विवश न किया जाए। मैं एक ऐसा स्कूल भी चाहता
था जिसमें सजा नाम की कोई चीज न हो।
रोजलिंड : यह तो ए.एस. नील जैसी ही बात लगती है ?
डेविड : हां। हालांकि बहुत सारे मुद्दों पर मेरी ए.एस. नील से जबरदस्त
असहमति भी है। जाहिर है, जहां आप कोई सजा नहीं चाहते, वहां आप कोई
नियम भी नहीं रख पाएंगे क्योंकि जैसे ही आप कोई नियम लागू करना चाहेंगे,
उन पर अमल कराने के लिए अंतत: आपको किसी न किसी किस्म का दबाव भी
डालना होगा और आखिरकार आप कहेंगे कि यदि आप हमारी जीवन शैली में
सस््त्रयं को नहीं ढाल सकते तो मुझे अफसोस है, आप हमारे साथ नहीं रह सकते।
इसके बाद मैंने पाया कि सभी स्कूलों का पाठ्यक्रम बहुत दोषपूर्ण है । बच्चे
जब अपनी रचनात्मक ऊर्जा के चरम पर होते हैं, बारह-तेरह साल की उस उग्र
में, परीक्षा के दबाव में उन्हें रचनात्मकता के उन रास्तों को बंद करना पड़ता है-
क्योंकि परीक्षा को बहुत अनिवार्य माना जाता है। और जब मैंने तय किया कि में
परीक्षा का कोई दबाव नहीं बनाऊंगा। आज स्कूल को चलते दस साल हो गए,
हमने कभी कोई परीक्षा नहीं ली।
मेरा मानना है कि बच्चों के स्कूल छोड़ जाने या अनुत्तीर्ण रहने का एक
प्रमुख कारण कक्षाओं का विभाजन है। तो हमने कोई स्तर अथवा कक्षाएं नहीं
बनाईं। इसका फायदा यह है कि बच्चों को अपनी क्षमता के अनुरूप विकसित
होने का अवसर मिलता है। अपनी गति के अनुरूप आगे बढ़ने का।
28/डेविड ऑसबरों और नीलबाग स्कूल
रोजलिंड : तब तो आपको बच्चों के अनुपात में शिक्षकों को संख्या काफी
ज्यादा रखनी पड़ती होगी ?
डेविड : मुझे ऐसा नहीं लगता। में अकेला पच्चीस छात्रों तक को एक
कक्षा को अंग्रेजी पढ़ा सकता हूं । लेकिन निश्चय ही अधिकांश ग्रामीण विद्यालयों
की तुलना में हमारा छात्र-शिक्षक अनुपात बहुत कम है।
रोजलिंड : हूं, लेकिन ऐसी हालत में आपके यहां पढ़ाई का स्तर भी तो
उनसे बेहतर होना चाहिए कि नहीं ?
डेविड : शिक्षक के बारे में मेरी अवधारणा बहुत भिन्न किस्म को है। एक
शिक्षक का काम पढ़ाना नहीं बल्कि ऐसा वातावरण तैयार करना है जिसमें प्रत्येक
बच्चा अपने स्तर पर चीजों को सीख सके। जैसे लोग मुझसे कहते हैं '' देखो
दोस्त, अगर तुम राजनीति के बारे में कुछ भी नहीं जानते तो तुम विश्वविद्यालय
में राजनीति कैसे पढ़ा सकते हो ?”' लेकिन मेरा काम किसी को कुछ सिखाना या
पढ़ाना नहीं है । सामान्यत: हम एक शिक्षक कौ कल्पना एक ऐसे व्यक्ति के रूप
में करते हैं जो बहुत कुछ जानता है और उसे दूसरों तक पहुंचाने का काम करता
है। जैसे कि आप देखते हैं कि राजनीति विज्ञान में डिग्री प्राप्त एक व्यक्ति
राजनीति विज्ञान पढ़ाता है या साहित्य में एम.ए. करने वाला व्यक्ति साहित्य
पढ़ाता है या इतिहास का डिप्रीधारी शिक्षक इतिहास पढ़ाएगा। मैंने ऐसे किसी
विपय में कोई डिग्री प्राप्त नहीं की है। मूल बात है बच्चों को सीखने को प्रक्रिया
में शरीक करना, उन्हें पढ़ाना नहीं ।
रोजलिंड : एक बार फिर आपके स्कूल की स्थापना की ओर लौटत हैं।
अपने तय किया कि स्कूल में कोई नियम नहीं होगा, किसी को सजा नहीं दी
जाएगी और बच्चे अपनी इच्छा से आने या जाने के लिए स्वंतत्र होंगे। ऐसे में बच्च
स्कूल आएं- इसके पीछे कोई बहुत प्रबल निमित्त या प्रेरणा होनी चाहिए। आपके
स्कूल में क्या सिखाया जाएगा और उसके लिए क्या तरीके या उपकरण काम में
लिए जाएंगे, इस बारे में आपको बहुत सोच-विचार की जरूरत पड़ी होगी ?
डेविड : हां, इसके लिए बहुत प्रबल प्रेरणा की जरूरत थी। मैंने इस बारे
में बहुत सोचा कि वह क्या है जो बच्चों को सीखने के लिए प्रेरित करता है।
मूलत: सबसे जरूरी बात है बच्चों में सीखने की ललक पैदा होना, उसके बाद वे
स्वत: सीखने-पढ़ने लगेंगे। हमारे स्कूल में प्रतिस्पर्धा का कोई स्थान नहीं, हम
अंक, ग्रेड या प्रमोशन नहीं देते, हमारे यहां सजा का प्रावधान नहीं, बिल्ले या
इनाम नहीं दिए जाते। इस सबसे स्पष्ट हो जाता है कि हमारे यहां बच्चों को
प्रोत्साहित करने के भी एकदम नए तरीके अपनाए जाते हैं | मुझे लगता है कि जब
स्कूली शिक्षा : एक नई दृष्टि/29
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