रोशन सितारे | BRIGHT SPARKS - INSPIRING INDIAN SCIENTISTS

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अरदेसर खरसेदजी 17 1 अप्रैल 1841 को उन्होंने नया कार्यभार ग्रहण किया तो कई यूरोपीय अफसर उनके अधीन थे। अरदेसर खरसेदजी पहले भारतीय थे जिनके नीचे गोरे लोगों ने काम किया। उनके स्टाफ में एक मुख्य सहायक, चार गोरे फोरमैन, 100 गोरे अभियन्ता और बॉयलर-मेकर तथा 200 हिन्दुस्तानी कारीगर थे। उनकी नियुक्ति से कई गोरे लोगों को ईर्ष्या हुई। अँग्रेज़ों की तरफदारी करने वाले अखबार बॉम्बे टाइम्स (800104५ 7/॥7९5) ने उनकी नियुक्ति का अनुमोदन नहीं किया। उसने लिखा, “चाहे वह कितना भी पढ़ा-लिखा और योग्य क्‍यों न हो, फिर भी हमें सन्देह है कि किसी भी हिन्दुस्तानी में इतनी सक्षमता होगी कि वह बॉम्बे स्टीम फैक्ट्री जैसे संस्थान की कमान सम्हाल सके जिसमें उसे बहुत-से अँग्रेज़ों का निदेशन, निरीक्षण और नियंत्रण करना होगा।” परन्तु खरसेदजी ने अपनी इस ज़िम्मेदारी को बखूबी निभाया। 1849 में वे अमरीका गए। वहाँ उन्होंने लकड़ी काटने की कुछ मशीनें खरीदीं और उन्हें बम्बई भेजा। उस समय अमरीकी लोग भारतीयों के बारे में किस तरह रूढ़ीगत ढंग से सोचते थे यह उस परिवार के एक सदस्य के लिखे इस संस्मरण से स्पष्ट होता है जिसे मिलने एक दिन वे गए थे: उस समय के विदेशी मेहमानों में हमें सबसे ज़्यादा चकित किया छींट के कपडे की ऊँची टोपी पहने एक असली, जीते-जागते पारसी ने, जिसे हमारे एक मित्र चाय पर हमारे घर लाए। मेरे लिए यह एक नई बात थी कि अग्नि का एक उपासक साधारण लोगों की तरह चाय पी सकता था। पर वह एक सीधा-सादा शेर था, और नरमी से दहाड़ा। उसने ओरों की तरह ही डबलरोटी और मक्खन खाया और चाय पी। उसने बम्बई में अपनी ज़िन्दगी के बारे में हमें कई रोचक कहानियाँ सुनाईं। मुझे याद है कि हम बहुत स्पष्ट ढंग से बोल रहे थे, मानो हम किसी बच्चे से बात कर रहे हों और उसने हमारे प्रश्नों के उत्तर बहुत मद्धिम, सम्भ्रान्‍न्त और संस्कारित आवाज़ में दिए। उसकी अँग्रेज़ी हम लोगों की अँग्रेज़ी से कहीं बेहतर थी। फरवरी 1851 में अरदेसर खरसेदजी ने एक स्टीमर का जलावतरण किया




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