दादा का हाथी | DADA KA HAATHI

DADA KA HAATHI by पुस्तक समूह - Pustak Samuhमोहम्मद बशीर - MOHAMMAD BASHIR

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

मोहम्मद बशीर - MOHAMMAD BASHIR

No Information available about मोहम्मद बशीर - MOHAMMAD BASHIR

Add Infomation AboutMOHAMMAD BASHIR

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
३० दादा का हाथी उसके सारे गहने बाप्पा ने उतरवा लिये। उम्मा के भी ॥ बाप्पा उन्हें बेच-बाचकर मुकदमा लड़ रहे थे । द क्‍ कुंजुपात्तुम्मा का गला, कान, हाथ सब सूने हो गए। बाप्पा और उसके साथी जब देखो अदालत में । मुकदमा लड़ा जा रहा था 1 नतीजा चोंका देने के लिए काफ़ी था । कारण, अदालत ने बाप्पा के ख़िलाफ़ फ़ेसला सुना दिया था । हार और बेइज्जती--दोनों का बोझा ढोते हुए गाँव छोड़कर कहीं भाग जाने की नौबत आई । रा .. जायेंगे कहाँ ? हे साँस का समय । उस दिन चाँद भी जब्दी निकल आया । .. जिस घर में कुजुपात्तुम्मा पलकर बड़ी हुई, उससे उसने 'अलू- विदा ' कही । वे घर से निकल पड़े-बाप्पा अकड़ने हुए आगे, उम्मा सिर झकाये, आँसू बहातीं पीछे । और सबके पीछे कंजपात्तम्मा, बिना किसी खास जज्बे के । लोगों के देखते-देखते वे सड़क पर उतरे ओर मसजिद के सामने से नदी के घाट पर पहुँचे । . इस घटना से दुनिया का कुछ भी नहीं बिगड़ा ।. मगर. ..उनका अतीत, वतंमान, भविष्य...सब मिट॒टी में मिल गया। तो भी चाँदनी की झलक में नदी और उसका रेतीला किनारा जगमगा रहा था 1...पानी में लोग नहा रहे थे । ...बालू पर बैठे कुछ लोग हँसते- खेलते गप्पें मार रहे थे 1...दुनिया के छोटे-से पुर्जे के घुमाव में भी कोई फ़रक नहीं पड़ा । कंञपात्तम्मा बाप्पा-उम्मा के साथ चलती रही, उसे ख़द पता नहीं, कहाँ ? उसके पर लड़खड़ाये, तन थक गया । फिर भी करिश्मों से भरी है यह दुनिया । लोगों से खाली रास्ता सामने पड़ा था।. चाँदनी में वह माँ-बाप के पीछे-पीछे चलती गई। मंज़िल कहाँ है ? क्या यह रात कभी खत्म होगी ही नहीं ? 8 दो पुरानी खड़ाऊं कुंञपात्तुम्मा खुश थी | प्रतिवाद या प्रतिकार से मिली हुई निराली खुशी से उसका दिल भर गया । बेचारी मुसीबत की मारी थी ज़रूर, मगर कम-से-क्म यहाँ आदमज़ादों के दर्शन तो मिलते रहेंगे, साफ़ हवा खाने को मिलेगी, सूरज की किरणों में खड़ी रह . सकेगी, दूधिया चाँदनी में नहा पायगी । उछल-कूद सकेगी, खूब गा सकेगी -हालाँकि किसी गीत की एक भी कड़ी उसे आती नहीं । यहाँ उसे हर बात की आज़ादी है। भले ही मलक, जिन, इन्स कोई भी आये ! मगर अजीब बात है कि कोई आया नहीं । जिसके पास पैसा नहीं, उसकी भला कौन पर्वाह करता है । लेकिन कंजपात्तम्मा के दिल को इस खयाल से तसलल्‍ली न “मिली 1 दौलत नहीं तो क्या, उसमें जवानी तो है, और है कशिश । कुछ जवान उससे दिलचस्पी दिखाने छगे । कुछ उसकी तरफ देखकर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now