खच्चर और आदमी | KHACHCHA AUR AADMI

Book Image : खच्चर और आदमी  - KHACHCHA AUR AADMI

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

यशपाल - Yashpal

No Information available about यशपाल - Yashpal

Add Infomation AboutYashpal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१६ खच्चर और आदमी थी। उस व्यक्ति ने उसे जीवन भर के लिये अपनी बनाकर बम्बई ले जाने का आद्वासन दिया था। वैष्णवी को छोटे-मोटे क्षणिक अवलम्बों की कमी नहीं थी। उन्हें वह अपने माता-पिता और मुहल्ले के लोगों के परोक्ष में अनेक बार पकडती-बदलती रही थी । उस अस्थिरता से उसका मन विरक्त हो गया था । वह अपने चारों ओर चाह की खोचों से ऊब' गयी थी। पूरी बस्ती-मुहल्ले के जवान उसे चाहते थे, वैसे ही जसे धरती या छत पर पड़े अरक्षित भोजन के ग्रास को सब कौवे चाह से झपट लेना चाहते हैं और उसके लिये आपस में लड़ते हैं। वह बकोटने वाले हाथों से ऊब' कर रक्षा करने वाली बांहों के लिये तड़प उठी थी । वह अपनी गर्दत सदा के लिये किसी कन्धे पर रख देना चाहती थी परन्तु माता-पिता के घर में रहकर तो ऐसा कर सकना सम्भव नहीं था । द्रौपदी के दोनों बड़े भाई माता-पिता को असहाय छोड़कर जीवबिका की खोज में पहले ही जा चुके थे । मां बुढ़ापे और बाई के दर्दों से अपंग हो बेटी के भरोसे शिथिल हो गयी थी। बूढ़े पुरोहित पिता के घुटनों में भी अब' पुरोहिताई के लिये मुहल्ले-मुहल्ले घूमते फिरने का दम नहीं रहा था। द्रोपदी ही उनका सहारा थी । वह अवलम्ब पाने के लिये एक बार अपना घर छोड़ देने पर माता-पिता की चिन्ता से भी फिर घर नहीं लौट सकती थी । अपने पीछे माता-पिता की दुरावस्था की आशंका से उसका मन विह्ल हो जाता । कभी माता-पिता के सम्मुख आंखों में आंसू भर कह बैंठती--“यदि मैं न रहें, मैं मर जाऊं तो तुम्हारा क्या होगा ? एक संध्या वष्णवी द्रौपदी घाट के मंदिर में जप करने के लिये गयी तो फिर नहीं लौटी । तीन दिन ओर रात बीत गये, वह नहीं लोटी । बस्ती, मुहल्ले में ब्राह्मण की विधवा लड़की के भाग जाने के अपवाद का कुहराम मच गया । लोग वेष्णवी के मन्दिर में समाधि लगाकर अन्‍्तर्धान हो जाने की चर्चा कर मुस्कराने और कहकहे लगाने लगे । मुहल्ले के मसखरे आकर भोले पुरोहित से पूछ जाते कि वेष्णवी तीर्थ ब्रत को गयी है ? किस तीर्थ ब्रत के लिये ? कोई कह जाता--वैष्णवी सिद्धि प्राप्त कर अच्तर्धाव हो गयी। कोई कह जाता-- वेष्णवी योगिनी बन कर आकाश में उड़ गयी है। कोई कहता--वैष्णवी ने जल समाधि ले ली है । बेटी के वियोग से अधीर भोले पुरोहित के लिये सिर उठाना, किसी से आंख मिलाना, घर से बाहर निकलना कठिन हो गया ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now