आदिवासियों की उम्मीद थे सुनील भाई | TRIBUTE TO SUNIL GUPTA

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बाबा मायाराम - BABA MAYARAM

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पिछले डेढ़ साल से सामयिक वार्ता दिल्‍ली से इटारसी आ गई वे चाहते थे कि देश में वैचारिक बहस चलते रहना चाहिए। वार्ता इसका माध्यम बने। कार्यकर्ताओं के वैचारिक प्रशिक्षण व देश- दुनिया के बदलाव व विचारों को जानने का यह जरिया बने। वैकल्पिक राजनीति के वे प्रमुख सिद्धांतकारों में एक थे। वे चाहते थे व्यवस्था में बदलाव हो और इसके विभिन्‍न पहलुओं पर बहस चले। सही बदलाव तभी होगा। सामयिक वार्ता के इटारसी आने के बाद सुनील भाई की चिंता उसको लेकर हमेशा बनी रही। वे इसकी सामग्री से लेकर वितरण तक की चिंता करते थे। हम लोग हर अंक के बारे में योजना बनाते थे। यह अंक क्रोनी कैपिटलिज्म पर है। यह सुझाव भी सुनील भाई का था। वार्ता के इस अंक के संपादन का पूरा कार्य सुनील भाई के अंतिम कार्यो में से एक है। बीमार होने के कुछ समय पहले तक वे वार्ता का काम कर रहे थे। उनकी खास बात यह भी थी कि आदिवासी गांव में रहकर देश-दुनिया के बदलावों पर पैनी नजर रखते थे। हाल्र ही में हमने लातीनी अमरीका पर वार्ता का अंक निकाला था। जब समाज में जीवन मूल्य इतने गिर गए हों, कोई बिना ल्रोभ-लालच के सार्वजनिक व राजनैतिक काम न करता हो, सुनील भाई जैसे लोगों को देखकर किसी भी देशप्रेमी का दिल उछल सकता है। अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधी के लिए कहा था कि '“आनेवाली पीढ़ियां शायद मुश्किल से ही यह विश्वास करेंगी कि गांधीजी जैसा हाड़ मांस का पुतत्रा कभी इस धरती पर हुआ होगा।” सुनील भाई के लिए भी यह कथन सटीक बैठता है। लेकिन भारतीय लोकमानस में महान व्यक्तियों व महापुरूषों का गुणगान करने की परंपरा है। इससे हम अपने दायित्व से स्वतः ही मुक्त हो जाते हैं। सुनील भाई का व्यक्तित्व और जीवन प्रेरणादायी है। वे रचना और संघर्ष के रास्ते पर चलकर समाजवाद और नई दुनिया का सपना देखते थे। अगर हम उनके इस काम को कुछ आगे बढ़ा सकें तो यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।




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