शिक्षा के बजाय | INSTEAD OF EDUCATION

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जॉन होल्ट -JOHN HOLT

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शिक्षा की बजाय ने उनसे छिपाया था। या हो सकता है कि वे बस यही देखना चाहती थीं कि मेरी प्रतिक्रिया क्या होती है। शायद उन्होंने अनुमान लगाया हो कि यह चित्र देखकर मैं भौंचक्‍का रह जाऊँगा, जो हुआ भी। बहरहाल, मैं सोचता हूँ कि किसी अन्य स्कूल में या स्कूल से बाहर मैंने बच्चों से इस चित्र के बारे में और मल त्याग के बारे में या उनके मनचाहे किसी भी विषय पर बात को होती। ऐसी बातचीत से बच्चों ने बहुत कुछ सीखा होता। वे हमसे दुनिया के बारे में सीखना चाहते हैं। अधिकांश समय वे यही सीखते हैं कि हम वयस्क लोग दिखावा करते हैं, बातें छिपाते हैं, और झूठ बोलते हैं। जब तक एक व्यक्ति की दूसरे पर सत्ता है तब तक वास्तविक आदान- द . प्रदान, सच्चाई, ईमानदारी हो ही नहीं सकती। मुझे एक पुराने दोस्त से बातचीत याद आ रही है। उस समय वह हार्वर्ड में सीनियर था। उसे कॉलेज के दिनों में बहुत मज़ा आया था और उसका प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा था। एक दिन मैंने उससे पूछा कि क्‍या वह और उसके सहपाठी अपने प्रोफेसर से अक्सर असहमत होते थे। हँसकर उसने कहा, “बे सब कहते हैं कि वे द चाहते हैं कि तुम असहमति जताओ।” मगर फिर उसने बताया कि उसने और उसके सहपाठियों ने सीख लिया था कि जिसे कोर्स में “ए” चाहिए या जिसके लिए वह ज़रूरी है (जो सबके लिए थी), उसकी भलाई इसी में है. कि वह प्रोफेसर से कभी बहस न करे। टेस्ट में, परीक्षाओं में, यहाँ तक कि चर्चाओं में भी “ए” पाने का तरीका यह था कि प्रोफेसर के मतों के नज़दीक रहो, बस भाषा में इतना हेरफेर कर दो कि प्रोफेसर को यह न लगे कि उसके शब्दों की बौछार उसी पर की जा रही है। बरसों बाद मैंने टॉरोंटो में शिक्षकों के एक समूह से कहा कि जब तक एक व्यक्ति का दूसरे पर अधिकार है तब तक उनके बीच किसी बहुत ईमानदार संवाद की गुंजाइश नहीं है। बैठक के बाद एक युवा शिक्षिका मेरे पास आईं, वे काफी नाराज़ और तैश में थीं। उन्हें मेरे द्वारा किया गया करने व शिक्षा, $-८270००15 और ५-८४००15 तथा 1-८३८मटा और (-€ब८71८5 के बीच अन्तर बिल्कुल नहीं जँचा। उनका कहना था कि इससे क्‍या फर्क पड़ता है कि वे अपने छात्रों को ग्रेड और दण्ड दे सकती हैं; इसके बावजूद भी वे आपस में ईमानदार संवाद कर सकते हैं और छात्र उन्हें अपने विचार बताने में बिल्कुल नहीं डरते। उन्हें इस बात पर भी आपत्ति थी कि मैं उनको कक्षा को भयजनक और गैर-ईमानदार बता रहा हूँ। मैंने भी अपनी बात रखी। वे टस से मस नहीं हुईं, बल्कि उन्होंने और नाराज़ होकर कहा ८24 करने वाले बनाम पढ़ाने वाले स्कूल कि मैं जो बातें कह रहा हूँ वे हानिकारक और अस्त्य हैं। लगभग दस मिनट बाद मैंने उनसे पूछा, “क्या आपके स्कूल या स्कूल तंत्र में ऐसे लोग . हैं जिनका आपके ऊपर अधिकार है, जिन्हें आपको बर्खास्त करने का अधिकार, वेतन वृद्धि, पदोन्नति वगैरह देने या रोकने का अधिकार है?” : उन्होंने बताया कि ऐसे लोग हैं। मैंने पूछा, “क्या आप उनमें से किसी से उस तरह बात करेंगी जैसे मेरे साथ पिछले दस मिनट से कर रही हैं?” इस पर गौर करते हुए उनके चेहरे के भाव बदल गए। थोड़ी देर बाद उन्होंने धीमे से कहा, “नहीं, नहीं करूँगी।” मैंने कहा, “न मैं करूँगा। मुद्दा यही है।” जी हाँ, मुद्दा यही है। 28




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