तीन सौ रामायणें | TEEN SAU RAMAYAN

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ए० के० रामानुजम - A. K. Ramanujam

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/2/2016 मामले में, अगम्यगमन करने वाले पिता की मृत्यु का कारण बनने वाली पुत्री - से जुड़ी भारतीय इडीपसीय थीम।!९ अन्यत्र भी सीता के रावण की पुत्री होने का मोटिफ़ अनजाना नहीं है। यह जैन कथाओं की एक परंपरा (उदाहरण के लिए, वासुदेवाहिमदी) में और कन्‍नड़ तथा तेलुगु की ल्रोक परंपराओं में, साथ ही साथ अनेक दक्षिणपूर्व एशियाई रामायणों में आता है। कुछ जगहों पर यह आता है कि रावण अपनी ल्रोलुप युवावस्था में एक युवती का मर्दन करता है, जो प्रतिशोध लेने का संकल्प करती है और फिर उसका नाश करने के लिए उसकी पुत्री के रूप मेँ पुनर्जन्म लेती है। इस तरह मौखिक परंपरा प्रसंगों के एक ऐसे, बिल्कुल अलग, समूह में भागीदारी करती प्रतीत होती है जो वाल्मीकि के यहां अज्ञात है। दक्षिणपूर्व एशिया का एक उदाहरण भारत से दक्षिणपूर्व एशिया की ओर जाने पर हमें तिब्बत, थाईलैंड, बर्मा, लाओस, कंबोडिया, मलेशिया, जावा और इंडोनेशिया में रामकथा के भिन्‍न-भिन्‍न वाचन मिलते हैं। यहां हम सिर्फ़ एक उदाहरण, थाई रामायण रामकीर्ति, को देखेंगे। संतोष देसाई के अनुसार, थाई जीवन को रामकथा से ज़्यादा हिंदू मूल की किसी और चीज़ ने प्रभावित नहीं किया है।! ” उनके बौद्ध मंदिरों की दीवारों पर की गयी नक़्क़ाशी और चित्रकारी, शहरों और गांवों में खेले जाने वाले नाटक, उनकी नृत्यनाटिकाएं - ये सभी रामकथा की सामग्री का इस्तेमाल करते हैं। 'राजा राम' नाम के एक- के-बाद-एक कई राजाओं ने थाई में रामायण के प्रसंग लिखे : राजा राम प्रथम ने पचास हज़ार छंदों में रामायण का एक वाचन लिखा, राम द्वितीय ने नृत्य के लिए नये प्रसंग लिखे, और राम षष्ठ ने अनेक दूसरे प्रसंग जोड़े जिनमें से ज़्यादातर वाल्मीकि से लिये गये थे। थाईलैंड की ल्ोपबुरी (संस्कृत में लावापुरी), खिडकिन (किष्किंधा), और अयुथिया (अयोध्या) जैसी जगहेँ, अपनी ख्मेर और थाई कला के भग्नावशेषों के साथ, राम के आख्यान से संबद्ध हैं। थाई रामकीर्ति या रामकियेन (रामकहानी) कथा के तीन तरह के चरित्रों की उत्पत्ति के वर्णन के साथ शुरू होती है - मानवीय, दानवी और वानरी। दूसरा खंड दानवों के साथ भाइयों की पहली मुठभेड़, राम के विवाह और निर्वासन, सीता के अपहरण और राम की वानर कुल से मुलाक़ात का वर्णन करता है। इसमें युद्ध की तैयारियों, हनुमान के लंका-गमन और दहन, सेतु निर्माण, लंका की घेराबंदी, रावण के पतन और सीता एवं राम के पुनर्मिलन का भी वर्णन है। तीसरे खंड में लंका में एक विद्रोह का वर्णन है, जिस विद्रोह को दबाने के लिए राम अपने दो सबसे छोटे भाइयों को नियुक्त करते हैं। इस खंड में सीता के निर्वासन, उनके पुत्रों के जन्म, राम के साथ उनके युद्ध, सीता के धरती में प्रवेश और राम-सीता को मिलाने के लिए देवताओं के प्रकट होने का वर्णन है। हालांकि कई प्रसंग बिल्कुल वाल्मीकि की रामायण जैसे ही दिखते हैं, पर साथ ही कई चीज़ें अलहदा भी हैं। मिसाल के लिए, दक्षिण भारतीय लोक रामायणों की तरह (और कुछ जैन, बांग्ला और कश्मीरी रामायणों की तरह भी) सीता के निर्वासन को एक नया नाटकीय तर्काधार दिया गया है। शूर्पणखा (वह दानवी जिसका वर्षों पहले जंगल में राम और लक्ष्मण ने अंगभंग किया था) की बेटी सीता को अपनी माता के विकृत किये जाने के लिए ज़िम्मेदार मानती है और उससे बदला लेने के लिए तैयार बैठी है। वह अयोध्या आती है, एक दासी के रूप में सीता की सेवा में नियुक्त होती है, और रावण की एक तस्वीर बनाने के लिए उसे प्रेरित करती है। यह तस्वीर बनने पर अमिट हो जाती है (कुछ वाचनों में, यह सीता के शयनकक्ष में प्राणवंत हो उठती है) और राम का ध्यान अपनी ओर खींच लेती है। ईर्ष्या के आवेग में राम सीता को मार डालने का आदेश जारी करते हैं। लेकिन सदय लक्ष्मण उन्हें वन में जीवित ही छोड़ आते हैं और उन्हें मार डालने के सबूत के तौर पर एक हिरण का हृदय लेकर लौटते हैं। 16/28




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