सीता के मिथक का विकास | SITA KE MITHAK KA VIKAS

Book Image : सीता के मिथक का विकास  - SITA KE MITHAK KA VIKAS

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उमा चक्रवर्ती - UMA CHAKRAVARTI

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/2/2016 उपलब्ध होता है जिसका समय 251 ईसवी है। इसका नायक एक राजा है जो बोधिसत्व था और अपने चाचा द्वारा राज्य से बेदखल कर दिया गया। वह अपनी पत्नी के साथ पहाड़ों पर जाने के लिए विवश कर दिया गया था, वहाँ उसने एक तपस्वी का शांत जीवन जिया। एक दिन एक समुद्री-दानव तपस्वी के रूप में आया और बोधिसत्व की पत्नी को उठाकर ले गया। बोधिसत्व ने वानरों की सेना के राजा को अपना दोस्त बनाया और वानरों की मदद से उसने अपनी पत्नी को मुक्त कराया। पत्नी ने अपनी पवित्रता को सिद्ध किया और पत्नी-पति एक हो गए। !2 सेन तर्क देते हैं कि दो भिन्‍न मिथको के योग से वाल्मीकि रामायण की मूल कथा विकसित हुई | 13 वाल्मीकि रामायण से ही राम की संपूर्ण दंतकथा का विस्तार हुआ। इसमें राम की पुरानी गाथा और रावण के मिथक से ग्रहण कर एक महान महाकाव्य का सृजन किया गया जिसमें राम के भीतर पुरुष नायकत्व, शौर्य और सम्मान तथा सीता के भीतर नारी सुलभ आत्म-त्याग, सदाचार, पतिव्रता और पवित्रता पर बल दिया गया। वाल्मीकि रामायण से सीता की नव-उत्पन्न छवि के विश्लेषण से सूचना मित्रती है कि यह पाठ इन दो धारणाओं के प्रसार का प्रमुख माध्यम बना कि स्त्रियाँ पुरुषों की संपत्ति हैं और स्त्रियों की यौन-वफादारी उनके जीवन का महान सदगुण है।!* जैसा हमने देखा है कि प्राचीनतम वर्णन में सीता का अपहरण नहीं हुआ था और वह पीड़ित स्त्री चरित्र भी नहीं थी जिसे अपनी पवित्रता सिद्ध करनी पड़ी हो। मूलकथा के वाल्मीकि रामायण के रूप में विस्तार के परिणामस्वरूप कहानी तीन घटनाओं पर घूमती रही जिसमें से प्रत्येक ने स्त्री को रूढ़िबद्ध बनाकर कलंकित किया। पहली घटना है - राम के निर्वासन की कैकेयी की माँग; दूसरी है - शूपर्णखा का राम से प्रणय- निवेदन, उनके हाथों उसका अस्वीकार और तत्पश्चात्‌ लक्ष्मण द्वारा उसका अंग-भंग करना; और तीसरी है - सीता द्वारा हिरन की माँग और लक्ष्मण द्वारा उन्हें कुटिया में छोड़कर जाने में अनिच्छा दिखाने पर सीता द्वारा अनुचित दोषारोपन करना। अंतिम घटना का परिणाम यह हुआ कि सीता असुरक्षित छूट गईं जिससें उनका अपहरण हो गया। वास्तव में वाल्मीकि रामायण की कहानी प्रतिपादित करती है कि जीवन सुखद ढंग से चल सकता है पर स्त्रियों के दुर्गुण या चंचल स्वभाव के कारण यह नहीं हो पाता। इसके अतिरिक्त, रामायण कैकयी और शूपर्णखा जैसी महत्वाकांक्षी और पहल करनेवाली स्त्रियों को बुरी और घृणित बताकर स्त्रियों को नकारात्मक छवि भी प्रदान करता है। वाल्मीकि रामायण में स्त्रीत्व के निरूपण का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह आदिवासी समाज की स्त्री के विपरीत स्त्रियों की छवि के आर्य आद्यरूप का विकास है। इसका संबंध वाल्मीकि द्वारा समाजों के आर्थिक और सांस्कृतिक विकास के विभिन्‍न स्तरों के निरूपण से है - जैसे आर्यो या नरों के विरुद्ध राक्षसों और वानरों का निरूपण। राक्षस और वानर आर्थिक विकास की निम्न अवस्था में हैं परंतु उनकी स्त्रियाँ शक्तिशाली स्वतंत्र व्यक्तित्ववाली प्रतीत होती हैं, जबकि अयोध्या के समाज में स्त्रियाँ कार॒ुणिक रूप से पुरुषों के अधीन प्रदर्शित होती हैं | 15 राक्षसों और वानरों को वाल्मीकि रामायण में कृषि-पूर्व अवस्था में दिखाया गया है। वानर जंगल की भूमि और पर्वतों पर अपना अधिकार कर लेते हैं और यहाँ तक कि लंका में भी कृषि कर्म के कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मित्रते। वानरों के बीच समूह विवाह के प्रमाण मिलते है; बाली और सुग्रीव का विवाह क्रमशः तारा और रूमा से हुआ है, पर वे अलग अलग समय में दोनों स्त्रियों के साथ साझा करते हैं।? यहाँ पवित्रता की कोई नैतिक वर्जना नहीं प्रतीत होती जो स्त्रियों को पुरुषों के अधीन बनाने में प्रयुक्त होती रही है। अंजना ने वायु के द्वारा हनुमान को गर्भ में धारण किया जबकि उनके पति केसरी जीवित थे। बाली द्वारा रूमा के अपहरण के बावजूद सुग्रीव ने बिना शर्त 4/9




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