नागार्जुन : सम्पूर्ण उपन्यास - खंड 2 | NAGARJUN - SAMPOORN UPANYAS - BHAG 2
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
567
श्रेणी :
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बाबा नागार्जुन -BABA NAGARJUN
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)16 | नागार्जुन : सम्पूर्ण उपन्यास-2
थे, बड़ो-बड़ी कमलपत्री आँखों में उल्लास छलक रहा था। गोरी सूरत, सुडौल
देह !
पिता ने स्नेहपूर्ण निगाहों से पुत्री को देखा।
वह नजदीक आकर खड़ी हो गयी |
नाक पर पसीने की बूंदियाँ चमक रही थीं | चोटियों को जड़े की शकल में
लपेट लिया गया था, किन्तु उनके दोनों सिरे अपनी काली-चमकीली झालर छिपा
नहीं सके थे। सामने पेशानी पर एक पतली लट काले कुण्डल की तरह चिपकी
हुई थी ।
दुखमोचन ने कहा--'सारी बागवानी आज ही पूरी कर लोगी, बेटा ?”
लड़की खिलखिला पड़ी और बोली--“अभी-अभी तो खुरपी लेकर उधर
गयी थी कि आपने पुकार लिया। पदमा ने हजारा गेंदे के पोधे भेजे हैं, सोचा
कि लगा दे ।”
पिता मुस्कराये । नरमी से कहा--“उस रोज पुराना ब्लेड दिया था, ले
तो आओ, बेटी !”
दुखमोचन ने पैर के नाखूनों की तरफ हाथ से इशारा किया और जाने क्या
सोचने लगे ।
बच्ची ने ब्लेड लाकर पिता को थमा दिया और वापस चली गयी फुलवाड़ी
की ओर । पायलो की रुनझन-रुनझुन होले-होौले शून्य में समा गयी । दुखमोचन
ब्लेड से नाखन काटने लगे । उधर दालान पर सुखदेव शालिग्राम की पूजा कर
रहे थे । छोटी घण्टी की टुन-टुन टिन-टिन आवाज लगातार आ रही थी। साफ
था कि पण्डित सुखदेव मिश्र हमेशा की तरह आज सवेरे भी भगवान् को रिश्लाने
बैठ गये थे ।
आसमान साफ था और सूरज की किरणें खलकर खेलने लगी थी। बीच में
आँगन, चारों तरफ घर । लगता था कि भादों की कडी धूप धरती का गीलापन
पाँच-सात घण्टों मे ही सोख लेगी ।
बाएं पैर की बूढ़ी उंगली यानी सबसे मोटी और पहली उंगली बचपन में
ठेस खाकर बुरी तरह घायल हो गयी थी। तभी से उसका नाखून टूँठ पड़ गया
था । कोने में मसूर-नुमा खोडर बन गयी थी; उतनी दूर नाखून को संभालकर
काटना होता था। बाकी सारी उँगलियों के नाखन काटकर इसे आखिर में लेते
थे।
कई दिनों से अखबार नहीं देखा था। बाढ़-पीड़ितों के सहायता-कार्ये में
मशगूल रहने के कारण क्षण-भर की भी फुरसत नहीं मिली थी । अब आज काफी
अखबार इकटढठे ही देखने थे, मगर पलकें नींद की प्यासी थीं।
एक बार पलक झ्थिपी तो ब्लेड बहक गया। उसी अंगूठे का नाखून जरा
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