नागार्जुन : सम्पूर्ण उपन्यास - खंड 2 | NAGARJUN - SAMPOORN UPANYAS - BHAG 2

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बाबा नागार्जुन -BABA NAGARJUN

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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16 | नागार्जुन : सम्पूर्ण उपन्यास-2 थे, बड़ो-बड़ी कमलपत्री आँखों में उल्लास छलक रहा था। गोरी सूरत, सुडौल देह ! पिता ने स्नेहपूर्ण निगाहों से पुत्री को देखा। वह नजदीक आकर खड़ी हो गयी | नाक पर पसीने की बूंदियाँ चमक रही थीं | चोटियों को जड़े की शकल में लपेट लिया गया था, किन्तु उनके दोनों सिरे अपनी काली-चमकीली झालर छिपा नहीं सके थे। सामने पेशानी पर एक पतली लट काले कुण्डल की तरह चिपकी हुई थी । दुखमोचन ने कहा--'सारी बागवानी आज ही पूरी कर लोगी, बेटा ?” लड़की खिलखिला पड़ी और बोली--“अभी-अभी तो खुरपी लेकर उधर गयी थी कि आपने पुकार लिया। पदमा ने हजारा गेंदे के पोधे भेजे हैं, सोचा कि लगा दे ।” पिता मुस्कराये । नरमी से कहा--“उस रोज पुराना ब्लेड दिया था, ले तो आओ, बेटी !” दुखमोचन ने पैर के नाखूनों की तरफ हाथ से इशारा किया और जाने क्या सोचने लगे । बच्ची ने ब्लेड लाकर पिता को थमा दिया और वापस चली गयी फुलवाड़ी की ओर । पायलो की रुनझन-रुनझुन होले-होौले शून्य में समा गयी । दुखमोचन ब्लेड से नाखन काटने लगे । उधर दालान पर सुखदेव शालिग्राम की पूजा कर रहे थे । छोटी घण्टी की टुन-टुन टिन-टिन आवाज लगातार आ रही थी। साफ था कि पण्डित सुखदेव मिश्र हमेशा की तरह आज सवेरे भी भगवान्‌ को रिश्लाने बैठ गये थे । आसमान साफ था और सूरज की किरणें खलकर खेलने लगी थी। बीच में आँगन, चारों तरफ घर । लगता था कि भादों की कडी धूप धरती का गीलापन पाँच-सात घण्टों मे ही सोख लेगी । बाएं पैर की बूढ़ी उंगली यानी सबसे मोटी और पहली उंगली बचपन में ठेस खाकर बुरी तरह घायल हो गयी थी। तभी से उसका नाखून टूँठ पड़ गया था । कोने में मसूर-नुमा खोडर बन गयी थी; उतनी दूर नाखून को संभालकर काटना होता था। बाकी सारी उँगलियों के नाखन काटकर इसे आखिर में लेते थे। कई दिनों से अखबार नहीं देखा था। बाढ़-पीड़ितों के सहायता-कार्ये में मशगूल रहने के कारण क्षण-भर की भी फुरसत नहीं मिली थी । अब आज काफी अखबार इकटढठे ही देखने थे, मगर पलकें नींद की प्यासी थीं। एक बार पलक झ्थिपी तो ब्लेड बहक गया। उसी अंगूठे का नाखून जरा




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