हरामी | HARAAMI
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
42
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh
मिखाइल शोलोखोव - Mikhail Sholokhov
No Information available about मिखाइल शोलोखोव - Mikhail Sholokhov
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अरे मिख़ाईल, मेरे बेटे,
मत जा रे तू लाम पर
मेरी साँस अभी बाकी है
जीवन की मैं सभी बहारें देख रहा हूँ,
तू तो खिलता फूल अभी है
अभी तुझे शादी करनी है
मेरे लाल, मेरे लाल...
बालकों की हरकत से मीश्का को जो दुख हुआ था, अब वह उसे भूल गया। अब
उसे इस बात पर हँसी आ गई कि बाप की मुँछें उसके होंठों पर मूँज के उन रेशों की
भाँति अंकड़ी हुई थीं जिनसे माँ झाड़ू बनाती है। मूँछों के नीचे जब होंठ हिलते-डुलते
थे तो देखने से हँसी आती थी और जब मुँह खुलता था तो अन्दर एक गोल और
काला-सा छेद नज़र आता था।
“तू इस वक्त मेरे काम में खलल नहीं डाल मीन्का,” बाप ने कहा, “अभी मुझे
छकड़े की मरम्मत कर लेने दे और रात को सोते वक्त मैं तुझे लड़ाई की सभी बातें
सुनाऊगा |
हर रू र्
दिन लम्बा होता चला गया, स्तेपी से सुनसान लम्बे रास्ते की तरह। सूरज ने अपना
किरणजाल समेटा और घोड़ों का झुण्ड गाँव से गुजर गया। धूल बैठ गई और सँवलाये
हुए आकाश से पहले सितारे ने लजाते हुए धरती की ओर देखा।
मीश्का के मन को चैन नहीं था, और माँ जैसे कि जान-बूझकर देर करती जा रही
थी। वह देर तक दूध दुहती रही, देर तक उसे छानती रही, फिर तहखाने में गई तो वहीं
घण्टा-भर गुम रही। मीश्का को करार नहीं था, वह माँ के इर्द-गिर्द चक्कर काटता रहा
था।
“जल्द ही खाना दोगी न माँ?”
“ज़रा सब्र कर रे! मिल जायेगा खाना, मरा क्यों जा रहा है!”
मगर मीश्का उसके पीछे-पीछे लगा रहा। माँ तहख़ाने में जाये तो वह भी उसके पीछे,
माँ रसोईघर में जाये तो वह भी वहाँ हाजिर | जोंक की तरह चिपक गया माँ का दामन
पकड़े ।
15 / हरामी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...