उल जुलूल | UL JULOOL
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
6
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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सुकुमार राय - SUKUMAR RAI
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मोज में एक गोरे साहब का लगभग आधा तम्बू खा डाला था। पर इसका मतलब यह तो नहीं है कि हम
छरी - केंची, शीशी-बोतल भी खाते हैं। यह सब हम कभी नही खाते। हममें से कोई साबुन खाना पसंद करता
है, पर असल में वे निहायत छोटे -मोटे रददी साबुन होते हैं। मेरे ही छोटे भाई ने एक बार एक पूरी की पूरी
साबुन की बट्टी खा डाली थी...” कहते ही बेंकरण सिंह आकाश की ओर आँखें उठा बें बें दहाड़ें मार रोने लगा।
में फोरन समझ गया कि साबुन खा उसके भाई की अकाल मुत्यु हो गई होगी।
हिजि बिज् बिज् इस दोरान पड़ा-पड़ा सो रहा था। अचानक बकरे की विकट रुलाई सुन वह हड़बड़ाकर उठा
ओर ठसका खाकर बेहाल हो गया। मेंने सोचा, लो यह तो घबराहट से मर ही जाएगा। पर कुछ ही देर में दे
खता हूँ कि वह फिर से हाथ-पैर पटक हँस रहा हेै।
मेंने कहा, “लो, अब हँसने की क्या बात हो गई?”
उसका जवाब था, “अरे भई एक आदमी था जो सोते समय भयानक खर्राटे मारा करता था। इसलिए उससे सब
नाराज रहते थे। एक दिन उनके घर पर जोरदार बिजली कड़की। फिर क्या था, सभी घरवाले उसे ही पकड़कर
मारने- कटने लगे -हो:, हो:, हो, हो...”
मेंने चिढ़चर कहा, “सब बकवास है।” यह कह में जेसे ही पलटने लगा कि देखता क्या हूँ एक गंजा न जाने
किस नोटंकी के कलाकार-सा अचकन-पजामा पहने, मुस्क्राता-मुस्क्रता मुझे देख रहा है। देखते ही मेरे तन
बदन में मानो आग लग गई।
मुझे पलटता देख उसने बड़े लाड़ से कन्धे झुका, दोनों हाथ हिलाते हुए कहा, “ना भई ना, इस समय मुझे गाने
को मत कहना। सच कह रहा हूँ, आज मेरा गला अच्छी तरह खुलेगा ही नहीं। ”
मेंने झिडककर कहा, “क्या आफत है! गाने को कहा किसने? ”
पर वह आदमी तो निहायत बेशर्म निकला। वह फिर भी मेरे कान के पास घुनघुनाकर कहने लगा, “नाराज़ हो
गए? हाँ भई, गुस्सा गए? अच्छा तो फिर कुछेक गीत सुना देता हूँ, नाराज़ होने की कया जरूरत है?”
में कुछ कहूँ इसके पहले ही बकरा ओर हिजि बिज् बिज् एक स्वर में चिल्ला उठे, “हॉ-हाँ, गीत तो हो ही
जाए।” तुरन्त गंजे ने जेब से गीतों के दो बड़े पन्ने निकाले ओर उन्हें आँखों के पास ला, गुनगुन करते - करते
अचानक पलले सुर में चीत्कार कर गाने लगा - “लाल गीत में नीला सुर, हँसी-खुशी की गंध।” बस यही एक
पद उसने एक बार, दो बार, पाँच बार, दस बार गाया।
में उकताकर बोला, “अच्छी मुसीबत है, क्या गीत का कोई दूसरा पद हे ही नहीं?”
गंजे ने कहा, “ज़रूर है, पर वह एक दूसरा ही गीत है, वह है - अली-गली-चला राम, फूटपाथ पर धूमधाम,
स्याही से चूने का काम। पर यह गाना में आजकल नहीं गाता। एक ओर गाना है -नेनीताल का नया आलू। यह
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