आमादेर शान्तिनिकेतन | AAMADER SHANTINIKETAN
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
71
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कह दे कि अमुक छात्र आज गृहकार्य करके नहीं लाया है | क्रूरता
से भिंचे होंठ खुलते, छोटी-छोटी नग-सी बिठाई गई आंखें
चमकती और पढ़ाई आरम्भ होती | इस बीच यदि कोई भी जम्हाई
लेते पकड़ा जाता तो तत्काल पेशी होती | यह तनय दा की दृष्टि
से एक अक्षम्य अपराध था।
“इसका अर्थ यही है, कि तुम्हारा ध्यान कहीं और है|” वे
कहते, “बाहर निकल जाओ, जब तक जंगली की भांति मुंह
खोलना बन्द नहीं करोगे, मेरी कक्षा में मत आना |”
आए दिन, एक-न-एक छात्र या छात्रा को इस अपराध
का दण्ड स्वीकार करना पड़ता, क्योंकि जहां एक को जम्हाई
आती, चेष्टा करने पर भी जबड़ों पर, संयम का अंकुश व्यर्थ हो
जाता और देखते-ही-देखते दर्जनों मुंह, एक साथ खुलने बन्द
होने लगते। एक बार मुझे भी कुछ ऐसी ही आशंका हुई | बड़ी
चैष्टा से मैंने जम्हाई को घुटक लिया पर तनय दा की सर्वव्यापी
दृष्टि ने चोर पकड़ ही लिया। जब उन्होंने घुमा-फिराकर भूमिका
बांधी तो मैं पहले समझ ही नहीं पाई कि चोट मुझी पर है।
“यह तो आप सब जानते ही हैं कि जम्हाई दो प्रकार की
होती है,“-वे गम्भीर स्वर में कहने लगे, “अन्तरंग और बहिरंग |
जब निर्लज्जता से बत्तीसी दिखाकर जम्हाई ली जाती है तो उसे
'बहिरंग' जम्हाई कहते हैं, पर एक प्रकार की जम्हाई और होती
है-जब बड़े इलबल से, सलज्ज संचकित मृगी की वृष्टि से,
इधर-उधर देखकर, जम्हाई घुटक ली जाती है। इस प्रयत्न में,
कभी-कभी आंखों की पुतलियां फैल जाती हैं और नथुने भी फूल
उठते हैं। इस प्रकार की जम्हाई का, अभी-अभी एक उत्कृष्ट
उदाहरण मेरी एक छात्रा ने प्रस्तुत किया है। क्यों, क्या राय है
आप सब की | क्यों न उस उत्कृष्ट कला को पुरस्कृत किया
जाए ?/
32 / आमादेर शान्तिनिकेतन
जब तक मैं उस व्यंग्य को ग्रहण करती, मेरी कला पुरस्कृत
हो चुकी थी | मेरे ललाट पर अपने हाथ की खड़िया से, एक लम्बा
वैष्णवी त्रिपुण्ड खींच, तनय दा मुझे बीच कक्षा में खड़ी कर चुके
थे। मेरी वह त्रिपुण्ड चर्चित खिसियायी मुद्रा कई दिनों तक मेरे
दुष्ट सहपाठियों का मनोरंजन करती रही । जहां से निकलती 'की
हे वैष्णवी' के सम्बोधन, मुझे डसने लगते ।
तनय दा लिखावट की स्वच्छता पर विशेष ध्यान देते थे |
सामान्य-सी भी काट-छांट होती तो अभियुक्त को कठटखोघरे में
खड़ा कर दिया जाता। 'फिर से पूरा निबन्ध लिखो” कठोर आदेश
मिलता | एक बार अन्य अध्यापकों की मुंहलगी, एक सम्पन्न
रियासत की सुन्दरी असमी राजकन्या को भी केवल एक ही वाक्य
काटने पर उक्त कठोर दंड मिला ।
“मैंने एक ही वाक्य को काटा है”-बड़े दुस्साहस से उसने
कहा, “आपने मेरा पूरा सुन्दर निबन्ध ही काट दिया ।“
“तुम्हारे सुन्दर चेहरे से, केवल तुम्हारी नाक ही काट ली
जाती तो फिर क्या तुम्हारा चेहरा सुन्दर रह जाता ?” कठोर उत्तर
ने खींचकर भथप्पड़-सा मार दिया था। सिर झुकाकर बेचारी ने
दण्ड स्वीकार कर दिया था। जहां आश्रम के अन्य अध्यापक,
चतुर्दिक् फैली आश्रम की बहुरंगी कक्षाओं में बदल-बदलकर
अपनी छात्र-मण्डली को पढ़ाने ले जाते, कभी 'मालती छादिम
तला' की सुशीतल छाया में, कभी लतावेष्टित सघन कुंज में, कभी
बकुल पुष्पाच्छादित 'हॉर्स शू' में या गहन अमराई से सुवासित
'आम्रकुंज' में वहां तनय दा अपनी कक्षा को शिशु-विभाग के
सम्मुख चौंकोर जमीन के टुकड़े की लक्ष्मण रेखा में ही सदा
बांधकर रखते थे। उनका वही स्थान नियत था| आंधी हो या
तूफान, अचानक आ गए किसी बिछुड़े मित्र की ही भांति, कन्धे
पर हाथ धरकर, चौंका देने वाली, बंगाल की मीठी बूंदाबांदी हो
शान्तिनिकेतन की गुरुपल्ली / 33
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