अर्थशास्त्र का क-ख-ग | ARTHSHASTRA KA KA, KHA, GA

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२८) अतिरिक्त मुल्य सृष्टि कई विषयों पर निर्भर करती हैं। प्रथमतः मजदूर जितना ज्यादा समय काम करेया उतना ही ज्यादा अतिरिक्त मूल्य बनेगा। द्वितीयत: आवश्यक श्रम समय जितना ज्यादा होगा अतिरिक्त मूल्य बनाने का समय उतना ही कप्त होगा | इसलिये पूंजीपति आवश्यक श्रम समय कम करने की कोशिश करता है। आवश्यक श्रम समय कम करने के दो तरीके हैं। पहला तरीका है' श्रम शक्ति का मूल्य कम कर देना । श्रमशक्ति का मूल्य कम कर देने से मजदूर कम समय में ही अपनी श्रमशक्ति का समान मूल्य बना लेगा और बाकी समय वह अतिरिक्त मूल्य बनायेगा । उद्दाहरण के मान लीजिये श्रगशक्ति का मूल्य १ रुपया है, १ रुपया का मल्य तैयार करने में मजदूर को ४ घण्टे लगते है। यदि क्रिसी तरीके से श्रभशक्ति का मूल्य ५० पैसे हो जाता है तो मजदूर दो घण्टे में अयती श्रम्शक्ति का समान मूल्य बना लेगा । कारखाना में वह जो ८ घण्टे काम करता है उपमभे मे &-२ ८६ घण्टे वह अतिरिक्‍त मूल्य बतायेगा । अब सवाल है! कि श्रमशक्ति के पलल्‍य को कैसे कम किया जा सकता है। हम देखें हैं कि श्रमशक्ति का मूल्य जीने की ढंग पर निर्भर करता है मजदूर अगर शौक से जीना चाहता है तो उसका खर्च ज्यादा होगा व श्रमशक्िति का मूल्य भी ज्यादा होगा। जीने का खर्च अगर कम होता है तो श्रभशक्ति का मूल्य भी कम होगा । चांवल, दाल, तेल; नमक, कपड़ा, मकान किराया आदि के बाबत मजदूर का खर्च होता हैं । अगर इनके मूल्य कम हो गये तो श्रमशक्ति का मल्य भी कम होगा । लेकिन ये सभी चीज सस्ता तभौ होगा जव इन्हें बनाने में मेहनत कम लगेंगे। उद्योग की तरवकी या सस्ता में विदेश से आयात करने पर ये सस्ते हो सकते हैं । आवश्यक श्रम समय कम करने का दूसरा तरीका है श्रम का घनत्व बढा देना यानि, एक ही समय में मजदूर से ज्यादा मेहनत करवाना श्रम का घनत्व बढ़ानें से आवश्यक श्रम समय कम हो जाता है, मशीन से यह काम होती है। मशीन का काम ही है श्रम का घनत्व बढ़ाना, मजदूर को सशीन की गति के साथ चलना पड़ता है। नयौ-नयी मशीन और (२९) तक़तीक आविष्कार से मजदूर का श्रम का घनत्व वढ़ता जाता है । तो अतिरिक्त मूल्य यानि शोषण बढाने के तीन तरीके हैं- १) काम का समय वढ़ा देना, २) श्रम शक्ति का मूल्य यानि रोजी कम कर देना, ३) श्रम का घनत्व बढ़ा देना । अतिरिक्त मूल्य का कुल मात्रा को बढ़ाने के लिये मजदूरों की संख्या को बढ़ाना पड़ता है । मजदूरी (रोजी) श्रमशक्ति को मजदूर जब बेचता हैँ तं। उसे जो कीमत मिलती है उसे मजदूरी (रोजी) कहा जाता है | लेकिन श्रमशक्ति का कीमत हर समय श्रमशव्ति का मूल्य के बशबर नहीं होता । श्रमशक्ति की कीमत यानि मजदूरी श्रमशक्ति का मूल्य से ज्यादा या कम हो सकता है । अयर जदूर एकजुट व्‌ संगठित हे तो मालिक उन्हें उचित श्रम मूल्य देने का मजबूर होता है । लेकित अजगर अजदूर के बीच काम के लिये होड़ चले तो मालिक कम मजदूरी से काम ले सकता है। यानि श्रम मलय से भी कम कीमत में मालिक श्रमशक्ति खरीद सकता हे | कारखाना मालिकों के बीच होड़ रहने पर भी मजदूरी ज्यादा होतो है । श्रमशक्षित का मूल्य श्रमिक द्वारा व्यवहृत चीजों के मूल्य पर र#र्भर करता है। अलग-अलग वर्ग के लोग अलग-अलग ढंग से जीते हैं, अशब-जलग चीजें इस्तेमाल करते हैं, उनके खाना-कपड़ा बगरह अलग-अलग होते हैं और ये सब चीज न मिलने पर उसे बहुत तकलीफ होती है । अगर मजदूर को ऐसी मजदूरी दी जाय कि बह ये सब खरीद न सके तो वहु अपने काम को छोड़कर ज्यादा मजदूरी वाले काम को पाने की कोशिश करेगा । हृश रोज व्यक्षित जिन चीजों का हस्तेमाल करता है उन पर उसका जीवन-स्तर तय होता है । सिर्फ खाना- पीना एवं कपड़े से व्यक्तित का जीबननस्तर तय नहीं होता । ऐसे कई चीजें होते हैं जिनके न रहने परा जीना नागमकिन हो जाता है । जेसे कि खाद्य,




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