बस एक याद | BAS EK YAAD

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लियोनिद एन्ड्रेयेव - LEONID ANDREYEV

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पेड़-पौधे उग रहे थे, पूर्ण निस्तब्धता थी और लगता था कि बस अभी किसी कोने में से कोई निकल आएगा या खिड़की के टूटे-फूटे झरोखे में से कोई डरावना चेहरा दिखाई देगा। धीरे-धीरे पेत्का को दाचा पर ऐसा लगने लगा, मानो वह अपने ही घर रह रहा हो और वह यह भूल ही गया कि दुनिया में ओसिप अब्रामविच और नाई की दुकान का भी अस्तित्व है। “देखो तो, कितना मोटा हो गया है !” नादेभदा खुश होती | वह खुद भी काफी मोटी थी और रसोईघर की गर्मी से उसका चेहरा ताँबे के समोवार की तरह लाल हो गया था। नादेभदा सोचतीं थी कि पेत्का को खाना अच्छा मिलता है। परन्तु वास्तव में पेत्का बहुत कम ही खाता था इसलिए नहीं कि उसे भूख नहीं लगती थी, बल्कि इसलिए कि कौन इतना झंझट करे : अगर चबाए बिना ही खाना निगला जा सकता, तो बात और थी, पर यहाँ तो चबाना पड़ता था और बीच-बीच में खाली बैठे टाँगे हिलानी पड़ती थीं, क्योंकि नादेभदा बहुत ही धीरे-धीरे खाना खाती थी, हड्डियाँ चूसती थी, एप्रन से मुँह पोंछती थी और बेकार की बातें करती जाती थी। उधर पेत्का को न जाने कितने काम थे : पाँच बार तो नहाने जाना चाहिए, फिर झाड़ियों से बंसी के लिए डंडियाँ काटनी होती हैं, केंचुए ढूँढ़ने होते बस एक याद 16




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