मदारी | MADAARI

MADAARI by एलेग्जेंडर कप्रिन - ALEXANDER KUPRINपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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एलेग्जेंडर कप्रिन - ALEXANDER KUPRIN

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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' &८ 1४ के 1 ) 5 ३ + >> | क्‍ £22 /८ / /#२ रा । / ' ' न ४ | (2 ए / /1. हुआ ही (९ 2 परेशानी का कारण वह लड़का है, जो यों अचानक बरामदे पर आ धमका था। उधर वह लड़का लगातार चीखता हुआ दौड़ते-दौड़ते पेट के बल जा गिरा; तुरंत पीठ के बल उलट गया और बड़े जोर-जोर से चारों ओर हाथ-पैर फेंकने लगा। बड़े उसके इर्द-गिर्द दौड़-धूप करने लगे। बूढ़ा चोबदार मिन्‍नतें करता हुआ अपनी कलफ लगी कमीज पर दोनों हाथ जोड़ रहा था, गुलमुच्छे हिला रहा था और रुआँसी आवाज में कह रहा था : “छोटे मालिक!... ऐसा न कीजिए माँ को दुखी न कीजिए... मेहरबानी करके पी लीजिए। मिक्सचर तो मीठा है, एकदम शर्बत सा। उठ जाइए न...” एप्रन बाँधी औरतें हाथ झटक रही थीं, सहमी-सहमी और साथ ही जी हुजूरी करती हुई अपनी पतली आवाज़ों में जल्दी-जल्दी बोल रही थीं। लाल नाकवाली मिस ' बड़े दुखद अंदाज़ में ज़ोर-जोर से कुछ चिल्ला रही थी, पर कुछ समझ में न आता था, शायद वह किसी विदेशी भाषा में बोल रही थी। सुनहरा चश्मा चढ़ाए साहब नीची, भारी आवाज में लड़के को मना रहा था, साथ ही वह अपना सिर कभी एक ओर तो 17




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