भारतीय चित्त , मानस और काल | BHARTIYA CHITT, MANAS AUR KAAL
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
25
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)किया जा सकता है | द
त्रेता में जीवन की आवश्कताएँ बढ़ने लगती हैं | मात्र 'मधु' से अब
काम नहीं चलता | पर कषि अभी नहीं होती । हल चलाने, बीज-बोने, .
निराई-गुड़ाई आदि जैसी क्रियाओं की अभी जरूरत नहीं | अपने-आप
कुछ अनाज पैदा होता है । उस अनाज से, और वृक्षों के फलों और मेवों
आदि से जीवन चलता है। वृक्षों की भी बहुत जातियाँ नहीं हैं| कुछ
गिनी-चुनी वनस्पतियाँ और वृक्ष ही अभी सृष्षि में पाए जाते हैं।
... सीमित आवश्कताओं के इस युग में मानव कुछ कला, कौशल व
तकनीकें सीखने लगता है | सहज पैदा होने वाले अनाज और फलों आदि
को एकत्रित करने के लिए कुछ कला-कौशल चाहिए | फिर घर-बार, .
गाँव और नगर आदि बनने लगते हैं | इनके लिए और कलाओं व तकनीकों
की आवश्यकता हुई होगी |
सृष्टि की इस बढ़ती जटिलता के साथ जीव-जीव में विभिन्नता
आने लगती है | त्रेता में मानव तीन वर्णो में बँट जाता है | ब्राह्मण, क्षत्रिय
और वैश्य ये तीनों त्रेता में उपस्थित हैं | पर शूद्र अभी नहीं बने | इस विभिन्नता
और विभाजन के कारण भी जीव-जीव में संवाद व संपर्क में कोई व्यवधान द
अभी नहीं दीखता | मानव और अन्य जीवों के बीच भी संवाद चलता रहता
है | बाल्मीकि रामायण में वर्णित घटनाएँ त्रेता के अंत में घटती हैं | श्रीराम
का वानरों, भालुओं और पक्षियों आदि को अपनी सहायता के लिए बुलाना
और उनका श्रीराम के साथ मिलकर महाबली और प्रकांड विद्वान रावण...
की बहुसंख्य सेनाओं को हराना, इस बात का परिचायक है कि त्रेता के अंत
तक मानव और अन्य जीवों में संवाद टटा नहीं है | जीव-जीव में विभिन्नता
आई है, पर वह इतनी गहरी नहीं है कि संवाद व संपर्क की स्थिति ही न रहे |
त्रेता युग भी बहुत लंबी अवधि तक चलता है | पर त्रेता का काल
कृत के काल का तीन चौथाई ही है। कुछ ग्रंथों के अनुसार, श्रीराम के
स्वर्गारोहण के साथ ही त्रेता का अंत होकर द्वापर का प्रादुर्भाव होता है।.
भारतीय दृष्टि से जिसे इतिहास कहा जाता है उसका आरंभ भी द्वापर से ही
होता दीखता है।....
द्वापर में सृष्टि कृत युग की सहजता से बहुत दूर निकल चुकी है |
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सभी जीवों और भावों में विभिन्नता आने लगती है | त्रेता का एक वेद अब
चार में विभाजित हो जाता है और फिर इन चार की अनेक शाखाएँ बन
जाती हैं | इसी युग में विभिन्न विद्याओं और विधाओं की उत्पत्ति होती है |
ज्ञान का विभाजन होता है | अनेक शास्त्र बन जाते हैं। ..
सृष्टि की इस जटिलता में जीवन यापन के लिए अनेक कलाओं
और तकनीकों की जरूरत पड़ती है | अनेक प्रकार के शिल्प आते हैं | खेती
भी अब सहज नहीं रहती | अनाज पैदा करने के लिए अब अनेक प्रयत्न
करने पड़ते हैं |और इन विविध शिल्पों और कलाओं को वहन करने के लिए
_ ही शायद शूद्र वर्ण बनता है | इस तरह द्वापर में चार वर्ण हो जाते हैं।
.. द्वापर एक प्रकार से राजाओं का ही युग दिखता है | कुछ लोग तो .
द्वापर का प्रारंभ श्रीराम के अयोध्या के राजसिंहासन पर बैठने के समय से
ही मानते हैं | महाभारत के शांतिपर्व में और दूसरे पुराणों में राजाओं की जो
अनेक कथाएँ हैं उनका संबंध द्वापर से ही दिखता है | त्रेता की घटनाएँ वे
नहीं लगती | राजाओं की इन कथाओं में चित्रित वातावरण रामायण की
कथा के वातावरण से एकदम भिन्न है | रामायण में धर्म का ही साम्राज्य है |
पर द्वापर के राजा लोग तो क्षत्रियोचित आवेश में ही लिप्त हैं | उनमें अपार _
ईर्ष्या और लोभ है | क्ररता उनके स्वभाव में निहित है | इसीलिए शायद यह
माना गया है कि द्वापर में धर्म के केवल दो ही पाँव व बचे रहते हैं, और उन दो
पाँवों पर खड़ा धर्म डाँवाडोल रहता है | द
धर्म की हानि और क्षत्रियों की ईर्ष्या, लोभ व करता के इस संदर्भ में
ही पृथ्वी विष्णु से जाकर प्रार्थना करती है कि इतना अधिक बोझ अब उससे .
सहा नहीं जाता, और इस बोझ को हल्का करने का कोई उपाय होना
चाहिए | तब विष्णु श्रीकृष्ण और श्री बलराम के रुप में अंशावतार लेते हैं |
उनकी सहायता के लिए अनेक दूसरे देवों सें विभिन्न रूपों में अवतरण का
आयोजन होता है | इस सारे आयोजन के बाद महाभारत का युद्ध होता है |
उस युद्ध में धर्म की अधर्म पर विजय होती है, ऐसा सामान्यतः माना जाता
है ।पर इस विजय के बावजूद कलियुग का आना रुक नहीं पाता | महाभारत
के युद्ध के कुछ ही सालों में श्रीकृष्ण और उनके वंशज यादवों का भी अंत _
हो जाता है | यही समय कलियुग के आरंभ होने का माना जाता है । श्रीकृष्ण
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