धन यात्रा | DHAN YATRA

DHAN YATRA by पुस्तक समूह - Pustak Samuhमुस्ताक अहमद युसुफी -MUSHTAQ AHMED YUSUFI

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मुस्ताक अहमद युसुफी -MUSHTAQ AHMED YUSUFI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/17/2016 लिए निवेदन है कि अब कभी हम चश्मा उतार कर शीशा देखते हैं तो खुदा की कसम अपने कान नजर नहीं आते) कई बार चश्मा तोड़ने के बाद अब हम उसे उतार कर निर्भय खेलने लगे थे। खेलते क्या थे, हम हर एक से मेढ़े की तरह टक्करें लेते फिरते थे। विरोधी टीम में हमेशा बड़े पॉपुलर थे। इसलिए कि हमेशा अपनी ही टीम से गेंद छीनते और उन्हीं को फाउल मारते थे। खेल की शुरुआत में टॉस किया जाता। जो कप्तान टॉस हार जाता वो हमें अपनी टीम में शामिल करने के लिए बाध्य होता था। जब तक विरोधी खिलाड़ी ताक कर हमारे पाँव पर जोर से फुटबाल न मारे, वो हमारे किक को तरसती रहती थी, चूँकि सिर हमारी अधखुली बल्कि अधमुंदी आँखों का निकटतम अवयव था, इसलिए हमने सिर से फुटबाल रोकने और गोल करने का अभ्यास और महारत पैदा की। एक दिन हमने तीन फिट उछल कर 'हैड किया' तो जिस गोल चीज से हमने आँख बंद करके अपनी पूरी ताकत से टक्कर ली वो दैत्याकार जसवंत सिंह चौहान का मुंडा हुआ सिर निकला। वो शाम को भांग की ठंडाई पी कर फुटबाल खेलता था। हमारी नाक का बांसा (हड्डी) और दिल हमेशा के लिए टूट गया। हमने चश्मा उतार कर मर्दाना खेल से अपने पुराने संबंधों का सुबूत एंडरसन को दिखाया। नाक को झुकी और टूटी देखकर बहुत हँसा। कहने लगा तुम्हारा एक कान भी टेढ़ा लगा हुआ है। 'और तुम 1२111०85 01485९४ क्यों लगाते हो? तुम्हारी सूरत सर स्टीफर्ड क्रिप्स से मिलती है।' 'जर्गननवाजी का शुक्रिया, हमने खुश होकर कहा।' 'मुझे उस बास्टर्ड की सूरत से नफरत है।' तो फिर अब क्या जगह की कैद : हम अभी इस चोट को सहला भी न पाए थे कि सवाल पूछा 'कुंवारे हो?' 'नो सर' 'कितनी बीबियाँ हैं' उसने सवाल करके दोनों होंठ भींच लिए। 'एक' 'मुझे तो चार पर भी एतराज नहीं। लेकिन चार बीबियाँ में परेशानी यह है कि चार बार तलाक देनी पड़ती है।' भुलावा दे कर फिर वही सवाल दोहराया 'सिफारिश अपनी जगह, लेकिन बैंक में क्यों नौकरी करना चाहते हो? बैंकर के क्या कर्तव्य, जिम्मेदारियाँ होती हैं।' यह सुनते ही हमारे हाथों से परंपरागत तोते दुबारा उड़ गए और ऐसे उड़े कि वापस नहीं लौटे। हम फिर झूरने लगे। उचित कारण के बजाए लतीफे याद आने लगे लेकिन ये मौका उसके दामन को दिल्‍लगी से खींचने का नहीं था। हमने तब तक किसी बैंक को अंदर से नहीं देखा था। अलबत्ता इतना मालूम था कि अगर कोई शख्स यह साबित कर दे कि उसके पास इतनी जायदाद और सम्पत्ति है कि कर्ज की बिल्कुल जुरूरत नहीं तो बैंक उसे कर्ज देने पर राजी हो जाता है। मार्क ट्वेन का यह वाक्य कहीं पढ़ा था कि बैंकर अच्छे वक्‍तों का बेहतरीन साथी होता है। मौसम अच्छा हो तो जबरदस्ती अपनी छतरी हाथ में थमा देता है लेकिन जैसे ही छींटे पड़ने लगें तो कहता है लाओ मेरी छतरी, हमें तो ॥/81




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