पराया | PARAYA

PARAYA by दामोदर खडसे - Damodar Khadaseपुस्तक समूह - Pustak Samuhलक्ष्मण माने - LAKSHMAN MANE

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

दामोदर खडसे - Damodar Khadase

No Information available about दामोदर खडसे - Damodar Khadase

Add Infomation AboutDamodar Khadase

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

लक्ष्मण माने - LAKSHMAN MANE

No Information available about लक्ष्मण माने - LAKSHMAN MANE

Add Infomation AboutLAKSHMAN MANE

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
24 क्‍ हर पराया बेन ८-४८ -+- ८ 3 8 नो, सब बैंड बजा रहे थे | ढोलक का ढिगाडांग, टिपाडांग गतिशील हो उठा था | एक ठेका था। झांझ बज रहीं थी | कैकाड़ी, मदारी सारे कलाकार लोग | रात का मुकाबला शुरू हुआ | एक थका तो दूसरा सामने हाजिर हो जाता | बैंड चालू रहता | - पुजारी नंग-धडंग था | चमड़े के कोड़े से अपनी पीठ पर मारता '*मां कालीबाई की जयजयकार' कहकर घूमता रहता | एक नाद मूंज रहा था | लोग ठेके पर नाच रहे थे | देदी शरीर में संचार कर रही थी | जिनके शरीर में संचार होता वे ता ठोंककर नाचते- कूदते सामने मैदान में आ रहे थे | देखते-देखते देवी का संचार होने वालों की संख्या बढ़ने लगी | मंडप कम पड़ने छूमा | सब लोॉग-कोई कालूबाई, कोई सांताआसराया, कोई मरीमाई, कोई लक्ष्मीबाई, कोई खंडोबा, विरुवा, म्हसूबा, म्हालसाई, लमान आदि सब अठारह जाति. के देव-भूत नाच रहे थे | पुजारी हाथ में जलता कपूर लेकर मुंह में डाल रहा था | कोई नीम की पत्तियां खा रहा था | कोई अगरबत्ती चब्ा रहा था | सब लोग अपना नामघोष करते | बजाओ रे बजाओ कहते ही आठ दस लोगों का ढोल डिपडांग टिपडांग दाँव- ढाँव डिपडांग जोरों से शुरू करते थे | देव नाच रहे थे | बीच में ही बजना बंद हो जाता | किसी की पहेली होती ! वह पूछा करता, मां, बच्चे जीते नहीं | चार दिनों में ऊपरवाले का झाड़ू लगा | चारों बच्चे मर गए |' “मां, बीमार हूं बरकत नहीं है...' देव सुन लेता | झूमता रहता | मन में जो आता उस भाषा में वह बड़बड़ाता | पुजारी : देव से फिर बिनती करता ...'बताऊँ सो करो | सामने के मेले में झूला डाल...हूँ.. हुँ .. हूँ . हुं '...दो बकरे, चार मुर्गियां और मेरा देना दे | मुक्त हो जाएगा | वह सिर हिल्माता | कबूल करता । पैर छूता | कोई कहता बच्चा नहीं होता, जानवर जीते नहीं ...या तो किसी ने टोना कर दिया है...बीबी धर में टिकती नहीं | गधा जीता नहीं, इसी तरह के प्रश्न होते | देव शरीर में संचारता | देव के रुष्ट होने की कमी न थी | औरतों को अपने आंचल, साड़ी का भान न रहता | देव खेलता, पर जिसके शरीर में संचारता उसकी दुर्दशा होती | रात भर यह सब चलता | “बकरा दो, पेड़ा दे...मांढर देवी के मंदिर में जा...वहां का पानी ला .. -अमावस-पूनम में जाते रहो .. सेवा करो,..अपनी मर्यादा संभालो...। सारे लोग पुजारी के भीतर संचारित देव के पैर छू रहे थे और औरतें- बच्चे यह सारा उत्सव देख रहे थे | आरती के बाद अपने तंबू में लौट आये | तब तक खाना नहीं था | सारे मेहमान, सगे-संबंधी, मान- मनौती खाने पर बुलाते | हम खाना खाने जाते | चार-चार निवाले खाते किसी को मना नहीं करना था | उस दिन पिता कितनी जगह खाया होगा, किसे पता, बहुत खाया । मां भी मुझे तंबू में बिठाकर, मामा-मौसी, मां-पिता ये सब मेहमानों के साथ खाना खा आई | प्तब बड़बड़ा रहे थे | कैकाड़ी भीड़भाड़ हो गई थी | मुझे नींद आई। डटकर मटन खाया था | स्रो गया | आज देव-पालकी निकलने वाली थी । भोर में ही मां ने जगा दिया | भागते-दौड़ते नदी पर पहुंचा । वैसे पानी बहुत ठंडा था | कपड़े उतारे और नदी में कूद पड़ा | पानी बहुत गंदला पराया 43 गया था | ख्री- पुरुष सब स्नान कर रहे थे | नदी से ही दंडवतू कर रहे थे | सामने डफली बजती । भीगे कपड़ों से द्धियां दंडवत्‌ कर रही थीं | हाथ में एक पतली लकड़ी होती। नदी से ही लेटकर, हाथ जोड़ते हुये सरकते | हाथ की लकड़ी से निशान करते ...उठ खड़े होते। निशान तक चलते | फिर लेट जाते । सामने डफली बजती होती । गुठली की सीटी बजाते। पीछे रिश्ते की चार-पाँच स्त्रियां होतीं | इसी तरह लोटकर दंडवत्‌ प्रणाम करते हुए सब भगवान के चारों ओर घूमते | मुख्य देवी के मंदिर तक पहुंचने पर मनौती समाप्त होती | पुरुषों का लोटना अलग होता | उन्हें भीगी धोती में सोना पड़ता | आठ-दस हट्टे-कट्टे लोग होते | सामने बाजा बजता | सोने वाले मुंह में पान का बीड़ा रखते | चित-पट लोटने की शुरुवात करते। नदी से मंदिर तक ये लोटते लुढ़कते हुए जाते ...बाकी उन्हें दुर्गग स्थान से उठाकर समतल्ल स्थान पर ला रखते | वे फिर लोट-पोटकर देवी को पाँच फेरी लगाते और मनौती पूरी करते। ल्लान कर मैं लौटा | दिन उगते ही आरती हुई | पालकी निकली | सामने चार लोग पालकी को काँधा देते | चार लोग पीछे काँधा देते | पालकी के लिए पुजारियों का मान होता। पालकी पुजारियों के बिना न हिलती | और पुजारी मेले में आए प्रत्येक व्यक्ति से बकरे का सिर, पाया, चमड़ा, टुकड़े और सूखा-प्रिधा अर्थात मेहूँ या ज्वार जमा करते | चार- पाँच बोरे बकरे के सिर, टुकड़े, अनाज, पाया और चमड़े का बड़ा ढेर बनता | उसके बाद पालकी हिल पाती। प्रत्येक के तंबू तक जाती | वह अपनी टोकरी से देवता को पालकी का गुलाल लगाता | पालकी में पेढ़ा रखते | सब पालकी की आरती उतारते | उसके बाद दूसरे तंबू की ओर बढ़ते | इस तरह पाल झुलाती पालकी घूमती रहती | और पालकी नीचे गाँव में जाने के बाद, लौटने पर दोपह्दर उलट चुकी होती । पालकी नदी की ओर नीचे जाने पर, मेले में आए लोग बचा हुआ मटन खाने की शुरुवात करते | तब तक उसे न छूते | भोजन के बाद बाबा के मंदिर के पीछे बरगद के नीचे ये अठारह प्रकार ही जातियाँ एकत्र होतीं | गड़े मुर्दे उखाड़े जाते, लेन-देन की बातें चलती | जानवरों की खरीद-फरोख्त चलती | और किसी के झगड़े-विवाद होते तो उन्हें भी वहाँ रखा जाता | मैंने होटल के सामने खाना खाया | तात्या ने एक आने की लाल कुल्फी दी | चूसता- चूसता बाबा के मंदिर के पीछे गया... वहां लोगों की भीड़ थीं | ञ्रियां आई थीं | पुरुष आए थे | दो-चार बड़े-बूढ़े भी थे | पचरंगी पगड़ी में इतरा रहे थे | दोनों ओर बीस- पचीस लोग आए थे | उन दो दलों में एक बहुत बूढ़ा था | वह बोला, “कोर्ट का खर्च रखो |! द वह रकम बताता | वादी-प्रतिवादी पंचों के सामने पैसे रखते | फिर पक्षकार अपनी कैफियत रखते | वादी-प्रतिवादी को बोलने की इजाजत नहीं थी | उनकी ओर से जमानतदार ही बोलेगा। वादी- प्रतिवादी को आवश्यकता महसूस होने पर या नया मुद्दा सूसने पर अपने जमानतदार को एक ओर ले जाकर बताते | यह दोनों के जमानतदार की मार्फत चलता | मैं जब गया तब एक आदमी बता रहा था... 'मेरी औरत धर्मा के पास चार साल से गिरवी है | उसने पांच बार पचास-पचास रुपये दिये | मैंने कहा था कि मैं चार साल में लौटा दूंगा | अब मैं पैसे दे रहा हूं | परंतु वह मेरी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now