सकल बन ढूँढू : एक संगीतज्ञ | SAKAL BAN DHOONDO : EK SANGEETAK

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श्रीलाल शुक्ल - shreelal shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/11/2016 क्षितिज के आस-पास आ गईं। कुछ को मजदूरों की बस्तियों में जाने का हुक्म मित्र गया। ये तो सब आपके हुक्म की बॉदियाँ हैं। जहाँ चाहिए, वहा चली जाएँगी। क्यों सुरमादेवी? सब सुरमादेवी के मुँह की ओर देखने लगे, तब उन्होंने धीरे-से मुस्करा कर कहा, 'हुकुम की क्या बात है, यह तो देश-देश के रिवाज पर चलता है। अपने देश में जंगल का ही चलन है, तो मयूर जी क्या करें? अपने यहाँ तो घर है, या जंगल है और है ही क्या? यह तो देश-देश पर है।' इस पर बाबा अंबिकानंदनशरण ने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए गदगद कंठ से कहा, धन्य है! धन्य है! अब इसी बात पर देस का आलाप हो जाय प्रभू। धन्य है! धन्य है!' शीर्ष पर जाएँ 33




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