सकल बन ढूँढू : एक संगीतज्ञ | SAKAL BAN DHOONDO : EK SANGEETAK

SAKAL BAN DHOONDO : EK SANGEETAK by पुस्तक समूह - Pustak Samuhश्रीलाल शुक्ल - shreelal shukl

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

श्रीलाल शुक्ल - shreelal shukl

No Information available about श्रीलाल शुक्ल - shreelal shukl

Add Infomation Aboutshreelal shukl

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
8/11/2016 क्षितिज के आस-पास आ गईं। कुछ को मजदूरों की बस्तियों में जाने का हुक्म मित्र गया। ये तो सब आपके हुक्म की बॉदियाँ हैं। जहाँ चाहिए, वहा चली जाएँगी। क्यों सुरमादेवी? सब सुरमादेवी के मुँह की ओर देखने लगे, तब उन्होंने धीरे-से मुस्करा कर कहा, 'हुकुम की क्या बात है, यह तो देश-देश के रिवाज पर चलता है। अपने देश में जंगल का ही चलन है, तो मयूर जी क्या करें? अपने यहाँ तो घर है, या जंगल है और है ही क्या? यह तो देश-देश पर है।' इस पर बाबा अंबिकानंदनशरण ने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए गदगद कंठ से कहा, धन्य है! धन्य है! अब इसी बात पर देस का आलाप हो जाय प्रभू। धन्य है! धन्य है!' शीर्ष पर जाएँ 33




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now