सफ़ेद गुड | SAFED GUR

SAFED GUR by पुस्तक समूह - Pustak Samuhसर्वेश्वर दयाल सक्सेना - Sarveshwar Dayal Saxena

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सर्वेश्वर दयाल सक्सेना - Sarveshwar Dayal Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/23/2016 जब वह दुकान पर पहुँचा तो लालटेन जल चुकी थी। पंसारी उसके सामने हाथ जोड़े बैठा था। थोड़ी देर में उसने आँख खोली और पूछा, 'क्या चाहिए?' उसने हथेली में चमकती अठन्नी देखी और बोला, 'आठ आने का सफेद गुड़।' यह कहकर उसने गर्व से अठननी पंसारी की तरफ गद्दी पर फेंकी। पर यह गद्दी पर न गिर उसके सामने रखे धनिए के डिब्बे में गिर गई। पंसारी ने उसे डिब्बे में टटोला पर उसमें अठननी नहीं मिली। एक छोटा-सा खपड़ा (चिकना पत्थर) जरूर था जिसे पंसारी ने निकाल कर फेंक दिया। उसका चेहरा एकदम से काला पड़ गया। सिर घूम गया। जैसे शरीर का खून निकाल गया हो। आँखें छल्नछला आई। 'कहाँ गई अठन्नी!' पंसारी ने भी हैरत से कहा। उसे लगा जैसे वह रो पड़ेगा। देखते-देखते सबसे ताकतवर ईश्वर की उसके सामने मात हो गई थी। उसने मरे हाथों से जेब से पैसे निकाले, नमक लिया और जाने लगा। दुकानदार ने उसे उदास देखकर कहा, 'गुड़ ले लो, पैसे फिर आ जाएँगे।' 'नहीं।' उसने कहा और रो पड़ा। 'अच्छा पैसे मत देना। मेरी ओर से थोड़ा-सा गुड़ ले लो।' दुकानदार ने प्यार से कहा और एक टुकड़ा तोड़कर उसे देने लगा। उसने मुँह फिरा लिया और चल दिया। उसने ईश्वर से माँगा था, दुकानदार से नहीं। दूसरों की दया उसे नहीं चाहिए। लेकिन अब वह ईश्वर से कुछ नहीं माँगता। शीर्ष पर जाएँ 33




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