स्कूल पास या फ़ैल | SCHOOL - PASS YA FAIL

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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रेशमा भारती - RESHMA BHARTI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धमा-चौकड़ी मचती थी! ३ ., एक मिस डेजी थी। उनकी सख्ती और बात-बात में कभी-कभी बच्चों की बेइज्जती कर देने के कारण कुछ बच्चे तुकबंदी बनाया करते थे - डेजी वैरी लेजी'! इस किस्म के हल्के-फल्के मजाक तो कई टीचरों के साथ जोड़ रखे थे बच्चों ने। खाली पीरियडों में टीचरों की नकल करना एक अच्छा-खासा मनोरंजन होता था। पिटनें पर या. सजा पाने पर प्रायः बच्चे अपना गुस्सा टीचरों को बुरा-भला कहकर या फिर अपनी 'किताब-कॉपियों पर उनके डरावने, उल्टे-सीथे चित्र बनाकर निकाला करते थे। कुछ गालियां थी जिनका प्रयोग बच्चों के लिए कुछ टीचरों द्वारा और कुछ टीचरों के लिए ( पीठ-पीछे ) कछ बच्चों द्वारा होता था। मैं भी टीचरों के मजाक उड़ाने में हिस्सा लिया करती थी। मुझे याद है कि शुरू-शुरू में में कुछ टीचरों द्वारा अपशब्दों का प्रयोग होते देख बहुत दुखी होती थी और कुछ बच्चे जब-जब ऐसा करते तो उन्हें टोका करती थी ( टीचरों को तो में रोक नहीं सकती थी )। पर स्कूल की बड़ी कक्षाओं व कॉलेज तक पहुंचते-पहुंचते (मैं हैरान हूँ अपने पर) कभी-कभी मेरे मुख से भी सहज रूप में कुछ टीचरों के लिए अपशब्द निकल जाते थे। उस समय तत्काल तो मुझे अपने घृणा-गुस्से को यूं प्रकट कर राहत मिलती थी; पर बाद में कभी-कभी ग्लानि भी होती थी। ग्लानि इसलिए नहीं कि मैं उन टीचरों को उन विशेषणों के योग्य न समझती थी; बल्कि इसलिए कि में परेशान होती थी उस व्यवस्था से जिसने मेरे अंदर कड़वाहट भर दी थी। झूठ बोलना एक सामान्य बात थी। यद्यपि कुछ टीचर झूठ न बोलने की नसीहत देते नहीं थकतें थे; पर जनाब जरूरत पड़ने पर वे स्वयं भी झूठ बोलने में न हिचकिचाते और कई बच्चे भी बात-बात पर झूठ बोला करते थे। झूठ पर टिकी इस व्यवस्था में झूठ का सहज ही: मुंह-से निकल आना आणए्चर्यजनक न था। टीचरों का डर बच्चों से कई ७: इक काका ढक ७ काका जा काका 5 काका ाफा काका खत का प्र ब्ा तर त् डा झूठ बुलवाता था और बच्चों पर अपनी सर्वोच्चता की धाक जमाने या अपनी अक्षमता को छिपाने के प्रयास कई टीचरों से झूठ बुलवाते थे। कुछ समझदार ब कर्त्तव्यनिष्ठ अध्यापक-अध्यापिकाएं भी कई बार बच्चों की दुनिया .को समझ पाने में इस कदर असफल रहते थे या अनभिज्ञ रहते थे कि हैरानी होती और उनपर विश्वास टूटता-सा प्रतीत होता था। ...... प्रायः हम अपनी कक्षा में कहीं पर भी बैठ जाया करते थे। पक्‍के दोस्तों के ग्रुप प्रायः साथ-साथ बैठा करते। कभी-कभी बदलाव के लिए हम अपने स्थान परिवर्तित भी करते थे। कभी-कभी कुछ बच्चों में कक्षा के किसी चहेते बच्चे के साथ बेठने की होड़ भी रहती थी। पर एक बार हमारे क्लास टीचर ने हमें अपने नजरिए से बिठाने का प्रबन्ध किया। उन्होंने एक-एक करके पढ़ाई में बच्चों के विभिन्‍न स्तरों के आधार पर उन्हें बिठाया। कई साथी इस प्रक्रिया में एक-दूसरे से अलग होकर बैठनें पर मंजबूर हुए। कुछ दिनों तक हम लोग उदास रहे। पर यह अनुशासन क्लास की सर्वसम्मति से हम बच्चों ने तोड़ डाला और पहले की तरह अपनी मनमर्जी से बैठने लगे। हमारे अपनी एक संवेदनशील टीचर के समक्ष जब एक बार मेंने मार्मिक ढंग-से यह बात लिखित रूप में रखी कि फेल होने वाले छात्रों पर क्‍या बीतती थी या कैसे हम बिछड़ जाते थे; तब उनकी प्रतिक्रिया यह थी कि इस दृष्टि से तो हमने सोचा ही नहीं ...... हमारे द्वारा फेल करने का बच्चों के आपसी रिश्तों पर ....... रिएतों का यूं टूटना..... बिछुड़ना........ इस कदर असर पड़ता है....... इतना पहले कभी महसूस नहीं हुआ था ......। ( यद्यपि ठीक-ठीक शब्द तो याद नहीं, पर कछ ऐसा ही कहा था उन्होंने ) द




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