शिक्षा और विकास के सामाजिक आयाम | SHIKSHA AUR VIKAS KE SAAMAKIJ AAYAM

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मूनिस रजा - MUNISH RAZA

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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12 शिक्षा और विकास के सामाजिक आयाम होना चाहिए जो अपने विषय की नवीनतम प्रवृत्तियों से परिचित हो। एक तरफ किसी विषय के फैलते ज्ञान भंडार और दूसरी तरफ शिक्षक-शिक्षण कार्यक्रमों के जड़मान पुराने पड़ चुके ज्ञानाधार के बीच की खाई चिंताजनक है। इस खाई को तेजी से पाटना जरूरी है। इसके अतिरिक्त, स्वीकृत राष्ट्रीय मूल्यों का अंतरन्विश शिक्षक-प्रशिक्षण कार्यक्रम का अभिन्न अंग होना चाहिए। उच्चतर शिक्षा का स्तर बनाए रखने और सुधारने तथा राष्ट्रीय रोजगार बाजार के लिए उच्चकोटि के विशेषज्ञ तैयार करने के लिए सभी रोजगारपरक पाठ्यचर्याओं तथा शोध कार्यक्रमों में प्रवेश का नियमन राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षाओं के द्वारा किया जाना चाहिए। आवश्यकता इसकी भी है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सहायता से उच्च ज्ञान अर्जित करने की ऐसी संस्थाओं का राष्ट्रव्यापी जाल तैयार किया जाए जिनके पास गतिशील और नवीकरणोन्मुखी पाठ्यक्रम हों और जो अपने लिए राष्ट्रीय प्रवेश प्रणाली के जरिए स्नातकोत्तर कक्षाओं के छात्र लेने के लिए तैयार हों। राष्ट्रीय शिक्षाप्रणाली को एक सूत्र में बांधनेवाले तत्त्व के रूप में एक खुले राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की जा चुकी है। प्रथम, इसका भौगोलिक क्षेत्र भारतीय सीमा के समवर्ती होगा। दूसरे, इसके कार्यक्रम देश की विविधता में एकता को प्रतिबिंबित करेंगे क्योंकि उनका सारतत्त्व एकसमान होगा मगर उसमें क्षेत्रीय विभिन्‍नताओं का समावेश होगा। तीसरे, उसके पाठ्यचर्या-कार्यक्रमों में सैद्ांतिक दृढ़ता तथा व्यावसायिक झुकाव का सुंदर समन्वय होगा और वे ज्ञान पर आधारित कौशल के विकास के तथा खासकर जनसंख्या के वंचित भागों के लिए रोजगार बाजार में ऊपर की ओर बढ़ने के प्रभावशाली साधन होंगे। चौथे, इसकी पाठ्यचर्या दो या तीन वर्षोवाली पाठ्य-योजनाओं के सख्त कालगत ढांचे में न बंधी होकर संक्षिप्त, मध्यम और दीर्घ-अवधि की पाठ्य-योजनाओं के लचीले ढांचेवाली होगी, और यह ज्ञान पर आधारित विभिन्‍न कौशलों के विकास की विशिष्टताओं पर निर्भर होगा। पांचवें, औपचारिक विश्वविद्यालय प्रणाली और इसके कार्यक्रमों से, खासकर पढ़ने की सामग्री से इसका घनिष्ठ संबंध होगा। समूची उच्च शिक्षा की पाठ्यचर्याओं पर ब्रिटेन की तरह उसका गहरा प्रभाव पड़ेगा। छठा, ज्ञानार्थियों की एक विशाल संख्या तक अपने कार्यक्रमों को पहुंचाने के लिए आधुनिकतम संचार प्रौद्योगिकी का इसके द्वारा उपयोग किया जायगा। इस तरह देखा जाए तो राष्ट्रीय खुला विश्वविद्यालय भारत की शिक्षा-प्रणाली में राष्ट्रीय एकीकरण का सबसे शक्तिशाली माध्यम बन सकता है। अपने जीवन के अंतिम दिनों में स्वयं श्रीमती इंदिरा गांधी ने इस प्रस्ताव को अंतिम रूपरेखा दी थी। उनकी चिंतन-दृष्टि का, उनकी संवेदनशीलता, नवीकरण के प्रति उनकी रुचि और अभावग्रस्त लोगों के लिए उनकी प्रतिबद्धता का इससे अच्छा स्मारक कोई नहीं हो सकता कि राष्ट्रीय खुला विश्वविद्यालय नाम उनके नाम से खोला गया है। भारतीय शिक्षा प्रणाली के स्तर पर विविधता में एकता लाने के लिए बयालीसतवें संविधान संशोधन के अंतर्गत समुचित कानून बनाए जाने चाहिए। समवर्तिता पूरे देश भारतीय शिक्षा का ऐतिहासिक परिदृश्य 13 एकसमान शैक्षिक विकास के लिए संघ और राज्य सरकारों बीच सही अर्थों हे सहभागिता बन जाती है। विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कक तथा विभेदीकरण दंद्वात्मक रूप से जुड़े व एक-दूसरे पर निर्भर हैं। एक . अ ६ एकीकृत होता है और न विभेदीकृत, जबकि जटिल मानव संरचना दोनों होः हे एकीकरण को समांगीकरण से भिन्‍न समझा जाना चाहिए । किसी प्रणाली में एकता लिए बहुलता आवश्यक है, और एकता बहुलता में ही 23 न कि उसे नकारकर। जबकि अस्मिताओं के टूटने और समन्वित वस्तुओं में उनके दल जाने ' रे समांगीकरण है, एकीकरण अंतनिर्भरताओं के एक बहुस्तरीय और श्रेणीबद्ध व्यवस्था क द्वारा संभव होता है। वास्तव में समांगीकरण एकीकरण विरोधी है। जिस तरह कु अधिक मात्रा में मनुष्य होने के लिए कुछ कम मात्रा में भारतीय होने की आवश्यकता नहीं है, उसी तरह अधिक भारतीय होने के लिए कुछ कम तमिल होना भी हम नहीं है। न तो एकीकरण का अर्थ विगलन है और न विभेदीकरण का अर्थ विखंडन। विभेदीकरण को विच्छेदन और अलगाव से भिन्‍न ला जाना चाहिए। हि किसी 03 में बहुलता एकता को नकारती नहीं है बल्कि उसी में निहित और उसी गा ररः होती है। जबकि विभेदीकरण का अर्थ है विशिष्टीकरण की प्रकिया का 1 हे । विखंडन परिभाषा द्वारा ही अंतर्निर्भरताओं के संबंधों को मजबूत बनाता है इस रा त्‌ विच्छेदन की प्रकिया इन संबंधों के टूटने का नाम है। ऊपर की बातों से 8 हे है कि विकास की प्रक्रियाएं न तो एकीकरण से रहित विभेदीकरण पर आधा हा और न ही विभेदीकरण से शून्य एकीकरण पर। 80९3 तत्वों के हक कै साथ ही एकीकृत तत्त्वों के विभेदीकरण के रूप में ही विकास की प्रक्रिया मी है। यही सिद्धांत शिक्षा के क्षेत्र में समवर्तिता का आधार मुहैया कराता है। बन भारतीय शिक्षा प्रणाली में सक्षमता का स्तर बहुत ही कम है और इसे का हे भ संसाधन भी प्रशासन और प्रबंध की गंभीर कमियों के कारण नष्ट हो ते हैं। अनेक शिक्षा संस्थाओं में वर्ष में वास्तविक शिक्षण कार्य दिवसों की संख्या बहुत ही कम है। दीर्घावकाशों और सरकारी अवकाशों (साथ ही, पवित्र दिनों) के है भी प्रायः शिक्षण कार्य किसी न किसी कारण से स्थगित हो जाता है। जैसे, हि मैच में विजय, किसी बड़े व्यक्ति का निधन, सांस्कृतिक सप्ताह आदि ली अवकाश घोषित हो जाता है। दृष्क्रियात्मक परीक्षाओं और लंबी प्रवेश 428५ ५ ही साल का एक बड़ा भाग नष्ट हो जाता है। देश के कुछ भागों में हम न . एक 4वर्ग विहीन' (बिना कक्षावाले) समाज की ओर बढ़ रहे हैं। इस कलह को सुधारने के लिए तत्काल उपाय की आवश्यकता है। इस संबंध में कुछ सुझाव इस प्रकार हैं : हे स्तर पर कम से कम 230 दिन और विश्वविद्यालय स्तर पर 180 दिन तक का लगाएं बिना किसी भी 38 को छात्रों की अगले वर्ग में तरक्की की संचालित करने की छूट न दी जाए। ु मी प्रक्रियाओं, परीक्षाओं (और उनके लिए तैयारी की छुट्टियों) का संचालन




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